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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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BHARATVANI... Kavita Sings INDIA

Kavita Sings India भारतवाणी

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साप्ताहिक
 
BHARATVAANI...KAVITA SINGS INDIA I Sing.. I Write.. I Chant.. I Recite.. I'm here to Tell Tales of my glorious motherland INDIA, Tales of our rich cultural, spiritual heritage, ancient Vedic history, literature and epic poetry. My podcasts will include Bharat Bharti by Maithilisharan Gupta, Rashmirathi and Parashuram ki Prateeksha by Ramdhari Singh Dinkar, Kamayani by Jaishankar Prasad, Madhushala by Harivanshrai Bachchan, Ramcharitmanas by Tulsidas, Radheshyam Ramayan, Valmiki Ramayan, Soun ...
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TC LITERATURE

Tanishchavan

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मासिक
 
TC literature is one of the four fundamental pillars of TC crafts. This TC crafts deals with words .. Framing of words to form a Song , scripts , stories , poems , memes and others .. Tanishchavan created this to grow himself as a writer and hone his writing skills .This TC Literature is the last and the biggest mystery box of Tanishchavan which blasts and omits world and no swords .
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Sindhi Sanskriti with Tamana and Meena : Sindhi Samaj Podcast

Audio Pitara by Channel176 Productions

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साप्ताहिक
 
एक ऐसी संस्कृति जो दुनिया की सबसे पुरानी संस्कृतियों में से एक है, जो मुअन-जो-दड़ो से शुरू होती है या उससे भी पहले की हो सकती है। सिंधी भाषा प्राचीन और साहित्य की दृष्टि से समृद्ध है। सिंधी साहित्य जगत के साहित्यकारों ने सिंधी साहित्य को बहुत समृद्ध बनाया है। कोण है सिंधीयो के देवता? सिंधी साहित्य में सबसे पहला संदर्भ किस इतिहासकारों के लेखन में मिलता है? इन सारे सवालों के जवाब जानने के लिए सुनिए सिंधी संस्कृति with तमन्ना और मीणा सिर्फ ऑडियो पिटारा पर. आपको ये शो कैसा लगा? ये कमेंट करके जरू ...
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Chanakya Neeti (Sutra Sahit)

Audio Pitara by Channel176 Productions

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This audiobook is a compilation of teachings by Chanakya, a prominent figure in ancient Indian literature. Among the numerous works of ethics literature in Sanskrit, Chanakya Neeti holds a significant place. It provides practical advice in a succinct style to lead a happy and successful life. Its main focus is to impart practical wisdom for every aspect of life. It emphasizes values like righteousness, culture, justice, peace, education, and the overall progress of human life. This book beau ...
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Khule Aasmaan Mein Kavita

Nayi Dhara Radio

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यहाँ हम सुनेंगे कविताएं – पेड़ों, पक्षियों, तितलियों, बादलों, नदियों, पहाड़ों और जंगलों पर – इस उम्मीद में कि हम ‘प्रकृति’ और ‘कविता’ दोनों से दोबारा दोस्ती कर सकें। एक हिन्दी कविता और कुछ विचार, हर दूसरे शनिवार... Listening to birds, butterflies, clouds, rivers, mountains, trees, and jungles - through poetry that helps us connect back to nature, both outside and within. A Hindi poem and some reflections, every alternate Saturday...
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आप सभी का स्वागत है! कृपया सुनें और अपना प्यार दे❤️🌻 This Show Presents Only Poetry,Stories and Many more Hindi Literature.
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"Urvashi" by Ramdhari Singh Dinkar is a celebrated epic poem in Hindi literature. It reimagines the tale of Urvashi, the celestial nymph, and her relationship with King Pururava. Dinkar's poetic brilliance and storytelling prowess breathe new life into this classic mythological narrative, exploring themes of love, desire, and the eternal quest for immortality. Visit https://krity.app/ for more books and to become a narrator. Follow us on Instagram @krity.app and stay updated with the latest ...
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Nayidhara Ekal

Nayi Dhara Radio

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साहित्य और रंगकर्म का संगम - नई धारा एकल। इस शृंखला में अभिनय जगत के प्रसिद्ध कलाकार, अपने प्रिय हिन्दी नाटकों और उनमें निभाए गए अपने किरदारों को याद करते हुए प्रस्तुत करते हैं उनके संवाद और उन किरदारों से जुड़े कुछ किस्से। हमारे विशिष्ट अतिथि हैं - लवलीन मिश्रा, सीमा भार्गव पाहवा, सौरभ शुक्ला, राजेंद्र गुप्ता, वीरेंद्र सक्सेना, गोविंद नामदेव, मनोज पाहवा, विपिन शर्मा, हिमानी शिवपुरी और ज़ाकिर हुसैन।
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Kahani Train

Nayi Dhara Radio

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मासिक
 
कहानी ट्रेन यानी बच्चों की कहानियाँ, सीधे आपके फ़ोन तक। यह पहल है आज के दौर के बच्चों को साहित्य और किस्से कहानियों से जोड़ने की। प्रथम, रेख़्ता व नई धारा की प्रस्तुति।
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Nayi Dhara Samvaad Podcast

Nayi Dhara Radio

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मासिक
 
ये है नई धारा संवाद पॉडकास्ट। ये श्रृंखला नई धारा की वीडियो साक्षात्कार श्रृंखला का ऑडियो वर्जन है। इस पॉडकास्ट में हम मिलेंगे हिंदी साहित्य जगत के सुप्रसिद्ध रचनाकारों से। सीजन 1 में हमारे सूत्रधार होंगे वरुण ग्रोवर, हिमांशु बाजपेयी और मनमीत नारंग और हमारे अतिथि होंगे डॉ प्रेम जनमेजय, राजेश जोशी, डॉ देवशंकर नवीन, डॉ श्यौराज सिंह 'बेचैन', मृणाल पाण्डे, उषा किरण खान, मधुसूदन आनन्द, चित्रा मुद्गल, डॉ अशोक चक्रधर तथा शिवमूर्ति। सुनिए संवाद पॉडकास्ट, हर दूसरे बुधवार। Welcome to Nayi Dhara Samvaa ...
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Udaya Raj Sinha Ki Rachnayein Podcast

Nayi Dhara Radio

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साप्ताहिक
 
स्वागत है आपका नई धारा रेडियो की एक और पॉडकास्ट श्रृंखला में। यह श्रृंखला नई धारा के संस्थापक श्री उदय राज सिंह जी के साहित्य को समर्पित है। खड़ी बोली प्रसिद्ध गद्य लेखक राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह के पुत्र उदय राज सिंह ने अपने पिता की साहित्यिक धरोहर को आगे बढ़ाया। उन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत से उपन्यास, कहानियाँ, लघुकथाएँ, नाटक आदि लिखे। सन 1950 में उदय राज सिंह जी ने नई धारा पत्रिका की स्थापना की जो आज 70+ वर्षों बाद भी साहित्य की सेवा में समर्पित है। उदयराज जी के इस जन्मशती वर्ष में हम उ ...
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तुलसीदास जी का जन्म, आज से लग-भग 490 बरस पहले, 1532 ईसवी में उत्तर प्रदेश के एक गाँव में हुआ और उन्होंने अपने जीवन के अंतिम पल काशी में गुज़ारे। पैदाइश के कुछ वक़्त बाद ही तुलसीदास महाराज की वालिदा का देहांत हो गया, एक अशुभ नक्षत्र में पैदा होने की वजह से उनके पिता उन्हें अशुभ समझने लगे, तुलसीदास जी के जीवन में सैकड़ों परेशानियाँ आईं लेकिन हर परेशानी का रास्ता प्रभु श्री राम की भक्ति पर आकर खत्म हुआ। राम भक्ति की छाँव तले ही तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस और हनुमान चालीसा जैसी नायाब रचनाओं को ...
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shaam e shayari

Fanindra bhardwaj

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रोज
 
"sham e shayari" is a captivating podcast that takes you on a poetic journey through the rich and expressive world of Hindi literature. With each episode, Fanindra Bhardwaj, a talented poet and voice artist, skillfully weaves together words and emotions to create a truly immersive experience. In this podcast, you'll encounter a wide range of themes, from love and heartbreak to nature and spirituality. Fanindra's poetry beautifully captures the essence of these emotions, allowing listeners to ...
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Munshi Premchand known as Katha Samrat of Hindi Literature. Out of the stories and novels he has written we know a very few of famous stories & novels written by him like Godaan, Nirmala, Bade Bhaisahab, kafan, buddhi Kaaki etc. But these are not the only stories which define his writing. Out of the 300 stories written by Munshi Premchand in Hindi, still there are stories which are unheard & unread. Indipodcaster presents unheard Premchand stories 'Premchand Ki Ansuni Kahaniyan' where member ...
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Navbharat Gold from the house of BCCL (Times Group), is a first of a kind Hindi Podcast Infotainment Service in the world, offering an unmatched range and quality of content across multiple genres such as Hindi audio news, current affairs, science, audio-documentaries, sports, economy, history, spirituality, art and literature, life lessons, relationships and much more. To listen to a much wider range of such exclusive Hindi podcasts, visit us at www.navbharatgold.com
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***Winner of Best Storytelling Fiction Podcast 2022 by Hubhopper*** Kahani Jaani Anjaani is a Hindi Stories (kahaani) podcast series narrated by theatre and voiceover artist, Piyush Agarwal. Following the mission of making sure no stories get lost he takes you to the world of Beautiful Hindi narrations & emotions. So stay tuned for new and old Hindi stories - every Friday! His weekly dramatized narrations of lesser known stories from popular authors like Premchand, Bhishm Sahani, Mannu Bhand ...
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कुम्हार अकेला शख़्स होता है | शहंशाह आलम जब तक एक भी कुम्हार है जीवन से भरे इस भूतल पर और मिट्टी आकार ले रही है समझो कि मंगलकामनाएं की जा रही हैं नदियों के अविरत बहते रहने की कितना अच्छा लगता है मंगलकामनाएं की जा रही हैं अब भी और इस बदमिजाज़ व खुर्राट सदी में कुम्हार काम-भर मिट्टी ला रहा है कुम्हार जब सुस्ताता बीड़ी पीता है बीवी उसकी आग तैयार करती है …
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Lekhraj Kishan Chand Mirchandani who was more popular and better known with his pen name Aziz. as 'Lekhraj Aziz'. He was born in Hyderabad Sindh in 1897, he passed BA and worked as a lecturer of Sindhi. In India Lekhraj settled at Mumbai. Lekhraj was a poet and was also famous for his heart touching selection of words for poems but besides contribu…
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सागर से मिलकर जैसे / भवानीप्रसाद मिश्र सागर से मिलकर जैसे नदी खारी हो जाती है तबीयत वैसे ही भारी हो जाती है मेरी सम्पन्नों से मिलकर व्यक्ति से मिलने का अनुभव नहीं होता ऐसा नहीं लगता धारा से धारा जुड़ी है एक सुगंध दूसरी सुगंध की ओर मुड़ी है तो कहना चाहिए सम्पन्न व्यक्ति व्यक्ति नहीं है वह सच्ची कोई अभिव्यक्ति नहीं है कई बातों का जमाव है सही किसी भी …
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एक बार जो | अशोक वाजपेयी एक बार जो ढल जाएँगे शायद ही फिर खिल पाएँगे। फूल शब्द या प्रेम पंख स्वप्न या याद जीवन से जब छूट गए तो फिर न वापस आएँगे। अभी बचाने या सहेजने का अवसर है अभी बैठकर साथ गीत गाने का क्षण है। अभी मृत्यु से दाँव लगाकर समय जीत जाने का क्षण है। कुम्हलाने के बाद झुलसकर ढह जाने के बाद फिर बैठ पछताएँगे। एक बार जो ढल जाएँगे शायद ही फिर ख…
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आँगन | रामदरश मिश्रा तने हुए दो पड़ोसी दरवाज़े एक-दूसरे की आँखों में आँखें धँसाकर गुर्राते रहे कुत्तों की तरह फेंकते रहे आग और धुआँ भरे शब्दों का कोलाहल खाते रहे कसमें एक -दूसरे को समझ लेने की फिर रात को एक-दूसरे से मुँह फेरकर सो गये रात के सन्नाटे में दोनों घरों की खिड़कियाँ खुलीं प्यार से बोलीं- "कैसी हो बहना?" फिर देर तक दो आँगन आपस में बतियाते र…
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शब्द जो परिंदे हैं | नासिरा शर्मा शब्द जो परिंदे हैं। उड़ते हैं खुले आसमान और खुले ज़हनों में जिनकी आमद से हो जाती है, दिल की कंदीलें रौशन। अक्षरों को मोतियों की तरह चुन अगर कोई रचता है इंसानी तस्वीर,तो क्या एतराज़ है तुमको उस पर? बह रहा है समय,सब को लेकर एक साथ बहने दो उन्हें भी, जो ले रहें हैं साँस एक साथ। डाल के कारागार में उन्हें, क्या पाओगे सि…
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Soundaryalhari Shlok 98_कदा काले मातः कथय कलितालक्तकरसं_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitasingsIndiaकदा काले मातः कथय कलितालक्तकरसं पिबेयं विद्यार्थी तव चरण-निर्णेजनजलम् । प्रकृत्या मूकानामपि च कविता0कारणतया कदा धत्ते वाणीमुखकमल-ताम्बूल-रसताम् ॥ 98 ॥
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बचे हुए शब्द | मदन कश्यप जितने शब्द आ पाते हैं कविता में उससे कहीं ज़्यादा छूट जाते हैं। बचे हुए शब्द छपछप करते रहते हैं मेरी आत्मा के निकट बह रहे पनसोते में बचे हुए शब्द थल को जल को हवा को अग्नि को आकाश को लगातार करते रहते हैं उद्वेलित मैं इन्हें फाँसने की कोशिश करता हूँ तो मुस्कुरा कर कहते हैं: तिकड़म से नहीं लिखी जाती कविता और मुझ पर छींटे उछाल क…
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परिचय | अंजना टंडन अब तक हर देह के ताने बाने पर स्थित है जुलाहे की ऊँगलियों के निशान बस थोड़ा सा अंदर रूह तक जा धँसे हैं, विश्वास ना हो तो कभी किसी की रूह की दीवारों पर हाथ रख देखना तुम्हारे दस्ताने का माप भी शर्तिया उसके जितना निकलेगा।द्वारा Nayi Dhara Radio
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सूर्य | नरेश सक्सेना ऊर्जा से भरे लेकिन अक्ल से लाचार, अपने भुवनभास्कर इंच भर भी हिल नहीं पाते कि सुलगा दें किसी का सर्द चुल्हा ठेल उढ़का हुआ दरवाजा चाय भर की ऊष्मा औ' रोशनी भर दें किसी बीमार की अंधी कुठरिया में सुना सम्पाती उड़ा था इसी जगमग ज्योति को छूने झुलस कर देह जिसकी गिरी धरती पर धुआँ बन पंख जिसके उड़ गए आकाश में हे अपरिमित ऊर्जा के स्रोत कोई…
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Mohan Gehani is a noted Sindhi scholar, playwright, translator and poet. Born in Karachi (Sind) on January 20, 1938, he belongs to a select community of writers who have lived through the Partition of India. Gehani, whose first short story appeared in 1955 in Naeen Duniyan, a progressive literary magazine, is the author of numerous books. He has al…
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लड़की | प्रतिभा सक्सेना आती है एक लड़की, मगन-मुस्कराती, खिलखिलाकर हँसती है, सब चौंक उठते हैं - क्यों हँसी लड़की ? उसे क्या पता आगे का हाल, प्रसन्न भावनाओं में डूबी, कितनी जल्दी बड़ी हो जाती है, सारे संबंध मन से निभाती ! कोई नहीं जानता, जानना चाहता भी नहीं क्या चाहती है लड़की मन की बात बोल दे तो बदनाम हो जाती है लड़की और एक दिन एक घर से दूसरे घर, अन…
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जरखरीद देह - रूपम मिश्र हम एक ही पटकथा के पात्र थे एक ही कहानी कहते हुए हम दोनों अलग-अलग दृश्य में होते जैसे एक दृश्य तुम देखते हुए कहते तुमसे कभी मिलने आऊँगा तुम्हारे गाँव तो नदी के किनारे बैठेंगे जी भर बातें करेंगे तुम बेहया के हल्के बैंगनी फूलों की अल्पना बनाना उसी दृश्य में तुमसे आगे जाकर देखती हूँ नदी का वही किनारा है बहेरी आम का वही पुराना पे…
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ख़ालीपन | विनय कुमार सिंह माँ अंदर से उदास है सब कुछ वैसा ही नहीं है जो बाहर से दिख रहा है वैसे तो घर भरा हुआ है सब हंस रहे हैं खाने की खुशबू आ रही है शाम को फिल्म देखना है पिताजी का नया कुर्ता सबको अच्छा लग रहा है लेकिन माँ उदास है. बच्चा नौकरी करने जा रहा है कई सालों से घर, घर था अब नहीं रहेगा अब माँ के मन के एक कोने में हमेशा खालीपन रहेगा !…
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हम न रहेंगे | केदारनाथ अग्रवाल हम न रहेंगे- तब भी तो यह खेत रहेंगे; इन खेतों पर घन घहराते शेष रहेंगे; जीवन देते, प्यास बुझाते, माटी को मद-मस्त बनाते, श्याम बदरिया के लहराते केश रहेंगे! हम न रहेंगे- तब भी तो रति-रंग रहेंगे; लाल कमल के साथ पुलकते भृंग रहेंगे! मधु के दानी, मोद मनाते, भूतल को रससिक्त बनाते, लाल चुनरिया में लहराते अंग रहेंगे।…
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तन गई रीढ़ | नागार्जुन झुकी पीठ को मिला किसी हथेली का स्पर्श तन गई रीढ़ महसूस हुई कन्धों को पीछे से, किसी नाक की सहज उष्ण निराकुल साँसें तन गई रीढ़ कौंधी कहीं चितवन रंग गए कहीं किसी के होंठ निगाहों के ज़रिये जादू घुसा अन्दर तन गई रीढ़ गूँजी कहीं खिलखिलाहट टूक-टूक होकर छितराया सन्नाटा भर गए कर्णकुहर तन गई रीढ़ आगे से आया अलकों के तैलाक्त परिमल का झो…
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मृत्यु - विश्वनाथ प्रसाद तिवारी मेरे जन्म के साथ ही हुआ था उसका भी जन्म... मेरी ही काया में पुष्ट होते रहे उसके भी अंग में जीवन-भर सँवारता रहा जिन्हें और ख़ुश होता रहा कि ये मेरे रक्षक अस्त्र हैं दरअसल वे उसी के हथियार थे अजेय और आज़माये हुए मैं जानता था कि सब कुछ जानता हूँ मगर सच्चाई यह थी कि मैं नहीं जानता था कि कुछ नहीं जानता हूँ... मैं सोचता था फ…
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इच्छाओं का घर | अंजना भट्ट इच्छाओं का घर- कहाँ है? क्या है मेरा मन या मस्तिष्क या फिर मेरी सुप्त चेतना? इच्छाएं हैं भरपूर, जोरदार और कुछ मजबूर पर किसने दी हैं ये इच्छाएं? क्या पिछले जन्मों से चल कर आयीं या शायद फिर प्रभु ने ही हैं मन में समाईं? पर क्यों हैं और क्या हैं ये इच्छाएं? क्या इच्छाएं मार डालूँ? या फिर उन पर काबू पा लूं? और यदि हाँ तो भी क…
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Vasdev Mohi is a Sindhi poet, translator, critic, short story writer and a retired lecturer. He also served as the member of the executive board of Sahitya Akademi and member of Council for Promotion of Indian Languages, collectively from 2008 to 2013. Learn more about your ad choices. Visit megaphone.fm/adchoices…
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स्वदेश के प्रति / सुभद्राकुमारी चौहान आ, स्वतंत्र प्यारे स्वदेश आ, स्वागत करती हूँ तेरा। तुझे देखकर आज हो रहा, दूना प्रमुदित मन मेरा॥ आ, उस बालक के समान जो है गुरुता का अधिकारी। आ, उस युवक-वीर सा जिसको विपदाएं ही हैं प्यारी॥ आ, उस सेवक के समान तू विनय-शील अनुगामी सा। अथवा आ तू युद्ध-क्षेत्र में कीर्ति-ध्वजा का स्वामी सा॥ आशा की सूखी लतिकाएं तुझको प…
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अपनी देवनागरी लिपि | केदारनाथ सिंह यह जो सीधी-सी, सरल-सी अपनी लिपि है देवनागरी इतनी सरल है कि भूल गई है अपना सारा अतीत पर मेरा ख़याल है 'क' किसी कुल्हाड़ी से पहले नहीं आया था दुनिया में 'च' पैदा हुआ होगा किसी शिशु के गाल पर माँ के चुम्बन से! 'ट' या 'ठ' तो इतने दमदार हैं कि फूट पड़े होंगे किसी पत्थर को फोड़कर 'न' एक स्थायी प्रतिरोध है हर अन्याय का '…
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ढेला | उदय प्रकाश वह था क्या एक ढेला था कहीं दूर गाँव-देहात से फिंका चला आया था दिल्ली की ओर रोता था कड़कड़डूमा, मंगोलपुरी, पटपड़गंज में खून के आँसू चुपचाप ढेले की स्मृति में सिर्फ़ बचपन की घास थी जिसका हरापन दिल्ली में हर साल और हरा होता था एक दिन ढेला देख ही लिया गया राजधानी में लोग-बाग चौंके कि ये तो कैसा ढेला है। कि रोता भी है आदमी लोगों की तरह…
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ओ मन्दिर के शंख, घण्टियों | अंकित काव्यांश ओ मन्दिर के शंख, घण्टियों तुम तो बहुत पास रहते हो, सच बतलाना क्या पत्थर का ही केवल ईश्वर रहता है? मुझे मिली अधिकांश प्रार्थनाएँ चीखों सँग सीढ़ी पर ही। अनगिन बार थूकती थीं वे हम सबकी इस पीढ़ी पर ही। ओ मन्दिर के पावन दीपक तुम तो बहुत ताप सहते हो, पता लगाना क्या वह ईश्वर भी इतनी मुश्किल सहता है? भजन उपेक्षित …
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Soundaryalahari Shlok 97_गिरामाहु-र्देवीं द्रुहिणगृहिणी-मागमविदो_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndia गिरामाहु-र्देवीं द्रुहिणगृहिणी-मागमविदो हरेः पत्नीं पद्मां हरसहचरी-मद्रितनयाम् । तुरीया कापि त्वं दुरधिगम-निस्सीम-महिमा महामाया विश्वं भ्रमयसि परब्रह्ममहिषि ॥ 97 ॥
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तुम आईं | केदारनाथ सिंह तुम आईं जैसे छीमियों में धीरे- धीरे आता है रस जैसे चलते-चलते एड़ी में काँटा जाए धँस तुम दिखीं जैसे कोई बच्चा सुन रहा हो कहानी तुम हँसी जैसे तट पर बजता हो पानी तुम हिलीं जैसे हिलती है पत्ती जैसे लालटेन के शीशे में काँपती हो बत्ती। तुमने छुआ जैसे धूप में धीरे धीरे उड़ता है भुआ और अन्त में जैसे हवा पकाती है गेहूँ के खेतों को तु…
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रात कटी गिन तारा तारा - शिव कुमार बटालवी अनुवाद: आकाश 'अर्श' रात कटी गिन तारा तारा हुआ है दिल का दर्द सहारा रात फुंका मिरा सीना ऐसा पार अर्श के गया शरारा आँखें हो गईं आँसू आँसू दिल का शीशा पारा-पारा अब तो मेरे दो ही साथी इक आह और इक आँसू खारा मैं बुझते दीपक का धुआँ हूँ कैसे करूँ तिरा रौशन द्वारा मरना चाहा मौत न आई मौत भी मुझ को दे गई लारा छोड़ न मे…
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अपने पुरखों के लिए | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी इसी मिट्टी में मिली हैं उनकी अस्थियाँ अँधेरी रातों में जो करते रहते थे भोर का आवाहन बेड़ियों में जकड़े हुए जो गुनगुनाते रहते थे आज़ादी के तराने माचिस की तीली थे वे चले गए एक लौ जलाकर थोड़ी सी आग जो चुराकर लाये थे वे जन्नत से हिमालय की सारी बर्फ और समुद्र का सारा पानी नहीं बुझा पा रहे हैं उसे लड़ते रहे, लड़ते …
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अमलताश | अंजना वर्मा उठा लिया है भार इस भोले अमलताश ने दुनिया को रौशन करने का बिचारा दिन में भी जलाये बैठा है करोड़ों दीये! न जाने किस स्त्री ने टाँग दिये अपने सोने के गहने अमलताश की टहनियों पर और उन्हें भूलकर चली गई पीली तितलियों का घर है अमलताश या सोने का शहर है अमलताश दीवाली की रात है अमलताश या जादुई करामात है अमलताश!…
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अत्याचारी के प्रमाण | मंगलेश डबराल अत्याचारी के निर्दोष होने के कई प्रमाण हैं उसके नाखुन या दाँत लम्बे नहीं हैं आँखें लाल नहीं रहती... बल्कि वह मुस्कराता रहता है अक्सर अपने घर आमंत्रित करता है और हमारी ओर अपना कोमल हाथ बढ़ाता है उसे घोर आश्चर्य है कि लोग उससे डरते हैं अत्याचारी के घर पुरानी तलवारें और बन्दूकें., सिर्फ़ सजावट के लिए रखी हुई हैं उसका…
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मैं शामिल हूँ या न हूँ | नासिरा शर्मा मैं शामिल हूँ या न हूँ मगर हूँ तो इस काल- खंड की चश्मदीद गवाह! बरसों पहले वह गर्भवती जवान औरत गिरी थी, मेरे उपन्यासों के पन्नों पर ख़ून से लथपथ। ईरान की थी या फिर टर्की की या थी अफ़्रीका की या फ़िलिस्तीन की या फिर हिंदुस्तान की क्या फ़र्क़ पड़ता है वह कहाँ की थी। वह लेखिका जो पूरे दिनों से थी जो अपने देश के इति…
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Soundaryalahari Shlok 96_कलत्रं वैधात्रं कतिकति भजन्ते न कवयः_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndiaकलत्रं वैधात्रं कतिकति भजन्ते न कवयः श्रियो देव्याः को वा न भवति पतिः कैरपि धनैः । महादेवं हित्वा तव सति सतीना-मचरमे कुचभ्या-मासङ्गः कुरवक-तरो-रप्यसुलभः ॥ 96 ॥
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अम्बपाली | विश्वनाथ प्रसाद तिवारी मंजरियों से भूषित यह सघन सुरोपित आम्र कानन सत्य नहीं है, अम्बपाली ! -यही कहा तथागत ने झड़ जाएँगी तोते के पंख जैसी पत्तियाँ ठूँठ हो जाएँगी भुजाएँ कोई सम्मोहन नहीं रह जाएगा पक्षियों के लिए इस आम्रकुंज में -यही कहा तथागत ने दर्पण से पूछती है अम्बपाली अपने भास्वर, सुरुचिर मणि जैसे नेत्रों से पूछती है पूछती है भ्रमरवर्णी…
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कौन हो तुम | अंजना बख्शी तंग गलियों से होकर गुज़रता है कोई आहिस्ता-आहिस्ता फटा लिबास ओढ़े कहता है कोई आहिस्ता-आहिस्ता पैरों में नहीं चप्पल उसके काँटों भरी सेज पर चलता है कोई आहिस्ता-आहिस्ता आँखें हो गई हैं अब उसकी बूढ़ी धँसी हुई आँखों से देखता है कोई आहिस्ता-आहिस्ता एक रोज़ पूछा मैंने उससे, कौन हो तुम ‘तेरे देश का कानून’ बोला आहिस्ता-आहिस्ता !!…
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था किसका अधूरापन | नंदकिशोर आचार्य शुरू में शब्द था केवल' -शब्द जो मौन को आकार देता है इसलिए मौन को पूर्ण करता हुआ उसी से बनी है यह सृष्टि पर सृष्टि में पूरा हुआ जो था किसका अधूरापन?द्वारा Nayi Dhara Radio
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कबाड़खाना | प्रतिभा सक्सेना हर घर में कुछ कुठरियाँ या कोने होते हैं, जहाँ फ़ालतू कबाड़ इकट्ठा रहता है. मेरे मस्तिष्क के कुछ कोनों में भी ऐसा ही अँगड़-खंगड़ भरा है! जब भी कुछ खोजने चलती हूँ तमाम फ़ालतू चीज़ें सामने आ जाती हैं, उन्हीं को बार-बार, देखने परखने में लीन भूल जाती हूँ, कि क्या ढूँढने आई थी!द्वारा Nayi Dhara Radio
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Bhagat Kanwar Ram ; A Sindhi Sufi singer and poet. He was a disciple of saint Satram Das Sahib of Raharki. Kanwar Ram was born to Tarachand Morira and Tirath Bai on 13 April 1885 in the Jarwar village of Sukkur district in Sind, British India. In this episode you will know about ,Bhagat Kanwar Ram Listen to the Sindhi Culture Podcast on Audio Pitar…
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बारिश चमत्कार की तरह होती है | शहंशाह आलम बारिश चमत्कार की तरह होती है उसने मुझे यह बात इस तरह बताई जिस तरह कोई अपने भीतर के किसी चमत्कार के बारे में बताता है उसने बारिश को लेकर जो कुछ कहा सच कहा मैंने भी देखा बारिश को प्रार्थना की मुद्रा में पेड़ के पत्तों पर बरसते पूरी तरह चमत्कारी।द्वारा Nayi Dhara Radio
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ये भरी आँखें तुम्हारी | कुँअर बेचैन जागती हैं रात भर क्यों ये भरी आँखें तुम्हारी! क्या कहीं दिन में तड़पता स्वप्न देखा सुई जैसी चुभ गई क्या हस्त-रेखा बात क्या थी क्यों डरी आँखें तुम्हारी। जागती हैं रात भर क्यों, ये भरी आँखें तुम्हारी! लालसा थी क्या उजेरा देखने की चाँद के चहुँ ओर घेरा देखने की बन गईं क्यों गागरी आँखें तुम्हारी। जागती है रात भर क्यों…
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ज़िन्दगी तेरे घेरे में रहकर - श्योराज सिंह 'बेचैन' ज़िन्दगी तेरे घेरे में रहकर क्या करें इस बसेरे में रहकर इस उजाले में दिखता नहीं कुछ आँख चुंधियाएँ, पलके भीगी सी रहकर अब कहीं कोई राहत नहीं है दर्द कहता है आँखों से बहकर हाँ, हमी ने बढ़ावा दिया है ज़ुल्म सहते हैं ख़ामोश रहकर मुक्ति देखी ग़ुलामी से बदतर क्यों चिढ़ाते हैं आज़ाद कहकर घूँट भर पीने लायक न छोड़ी म…
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Soundaryalahari Shlok 95_पुरारन्ते-रन्तः पुरमसि तत-स्त्वचरणयोः_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndiaपुरारन्ते-रन्तः पुरमसि तत-स्त्वचरणयोः सपर्या-मर्यादा तरलकरणाना-मसुलभा । तथा ह्येते नीताः शतमखमुखाः सिद्धिमतुलां तव द्वारोपान्तः स्थितिभि-रणिमाद्याभि-रमराः ॥ 95 ॥
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ख़ाली जगह | अमृता प्रीतम सिर्फ़ दो रजवाड़े थे – एक ने मुझे और उसे बेदखल किया था और दूसरे को हम दोनों ने त्याग दिया था। नग्न आकाश के नीचे – मैं कितनी ही देर – तन के मेंह में भीगती रही, वह कितनी ही देर तन के मेंह में गलता रहा। फिर बरसों के मोह को एक ज़हर की तरह पीकर उसने काँपते हाथों से मेरा हाथ पकड़ा! चल! क्षणों के सिर पर एक छत डालें वह देख! परे – स…
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तुम हँसी हो | अज्ञेय तुम हँसी हो - जो न मेरे होंठ पर दीखे, मुझे हर मोड़ पर मिलती रही है। धूप - मुझ पर जो न छाई हो, किंतु जिसकी ओर मेरे रुद्ध जीवन की कुटी की खिड़कियाँ खुलती रही हैं। तुम दया हो जो मुझे विधि ने न दी हो, किंतु मुझको दूसरों से बाँधती है जो कि मेरी ही तरह इंसान हैं। आँख जिनसे न भी मेरी मिले, जिनको किंतु मेरी चेतना पहचानती है। धैर्य हो त…
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चूल्हे के पास - मदन कश्यप गीली लकड़ियों को फूँक मारती आँसू और पसीने से लथपथ चूल्हे के पास बैठी है औरत हज़ारों-हज़ार बरसों से धुएँ में डूबी हुई चूल्हे के पास बैठी है औरत जब पहली बार जली थी आग धरती पर तभी से राख की परतों में दबाकर आग ज़िंदा रखे हुई है औरत!द्वारा Nayi Dhara Radio
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कोर्ई आदमी मामूली नहीं होता | कुंवर नारायण अकसर मेरा सामना हो जाता इस आम सचाई से कि कोई आदमी मामूली नहीं होता कि कोई आदमी ग़ैरमामूली नहीं होता आम तौर पर, आम आदमी ग़ैर होता है इसीलिए हमारे लिए जो ग़ैर नहीं, वह हमारे लिए मामूली भी नहीं होता मामूली न होने की कोशिश दरअसल किसी के प्रति भी ग़ैर न होने की कोशिश है।…
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Shah Abdul Latif Bhittai' is the foremost poet of the Sindhi language. His poetry is of exceptional quality. He has presented Sindhi folk tales in poetic form in the "Shah Jo Risalo" through melodies. The Sindhi folk tales include Suhini Mehar, Sassui Punhoon, Leela Chanesar, Moomal Rano, Umar Marvi, Noori Jaam Tamachi, and Sorath Rai Diyach. In th…
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बाज़ार | अनामिका सुख ढूँढ़ा, गैया के पीछे बछड़े जैसा दुःख चला आया! जीवन के साथ बँधी मृत्यु चली आई! दिन के पीछे डोलती आई रात बाल खोले हुई। प्रेम के पीछे चली आई दाँत पीसती कछमछाहट! ‘बाई वन गेट वन फ़्री!' लेकिन अतिरेकों के बीच कहीं कुछ तो था जो जस का तस रह गया लिए लुकाठी हाथ- डफ़ली बजाता हुआ और मगन गाता हुआ- ‘मन लागो मेरो यार फ़क़ीरी में!…
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माँ - दामोदर खड़से नदी सदियों से बह रही है इसका संगीत पीढ़ियों को लुभा रहा है आकांक्षाओं और आस्थाओं के संगम पर वह धीमी हो जाती है... उफनती है आकांक्षाओं की पुकार से पीढ़ियाँ, बहाती रही हैं इच्छा-दीप और निर्माल्य बिना जाने कि थोड़ी-सी आँच भी नदी को तड़पा सकती है पर नदी ने कभी प्रतिकार नहीं किया... हर फूल, हवन, राख को पहुँचाया है अखंड आराध्य तक कभी नह…
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हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी | निदा फ़ाज़ली हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी फिर भी तनहाईयों का शिकार आदमी सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमी हर तरफ़ भागते दौड़ते रास्ते हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी ज़िन्दगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र आख़िरी साँस तक बेक़रार आदमी…
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Soundaryalahari Shlok 94_कलङ्कः कस्तूरी रजनिकर बिम्बं जलमयं_Adi Shankaracharya Tantragranth_KavitaSingsIndiaकलङ्कः कस्तूरी रजनिकर बिम्बं जलमयं कलाभिः कर्पूरै-र्मरकतकरण्डं निबिडितम् । अतस्त्वद्भोगेन प्रतिदिनमिदं रिक्तकुहरं विधि-र्भूयो भूयो निबिडयति नूनं तव कृते ॥ 94 ॥
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बादल राग | अवधेश कुमार बादल इतने ठोस हों कि सिर पटकने को जी चाहे पर्वत कपास की तरह कोमल हों ताकि उन पर सिर टिका कर सो सकें झरने आँसुओं की तरह धाराप्रवाह हों कि उनके माध्यम से रो सकें धड़कनें इतनी लयबद्ध कि संगीत उनके पीछे-पीछे दौड़ा चला आए रास्ते इतने लंबे कि चलते ही चला जाए पृथ्वी इतनी छोटी कि गेंद बनाकर खेल सकें आकाश इतना विस्तीर्ण कि उड़ते ही चल…
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