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अगस्त की निर्वाचित पुस्तक
"धर्म ने हज़ारों वर्ष से मनुष्य जाति को नाको चने चबाऐ हैं। करोड़ों नर नाहरों का गर्म रक्त इसने पिया है, हज़ारों कुल बालाओं को इसने जिन्दा भस्म किया है, असंख्य पुरुषों को इसने ज़िन्दा से मुर्दा बना दिया है। यह धर्म पृथ्वी की मानव जाति का नाश करेगा कि उद्धार—आज इस बात पर विचारने का समय आगया है।
धर्म के कारण ही धर्म के पुत्र युधिष्ठिर ने जुआ खेला, राज्य हारा, भाइयों और स्त्री को दाव पर लगा कर गुलाम बनाया, धर्म ही के कारण द्रौपदी को पांच आदमियों की पत्नी बनना पड़ा। धर्म ही के कारण अर्जुन और भीम के सामने द्रौपदी पर अत्याचार किये गये और वे योद्धा मुर्दे की भांति बैठे देखते रहे। धर्म ही के कारण भीष्मपितामह और गुरुद्रोण ने पांडवों के साथ कौरवों के पक्ष में युद्ध किया, धर्म ही के कारण अर्जुन ने भाइयों और सम्बन्धियों के खून से धरती को रङ्गा, धर्म ही के कारण भीष्म आजन्म कुंवारे रहे, धर्म ही के कारण कुरुओं की पत्नियो ने पति से भिन्न पुरुषों से सहवास करके सन्तान उत्पन्न कीं।"...(पूरा पढ़ें)
सप्ताह की पुस्तक
"छह-सात सालकी अुम्रसे लेकर १६ वर्ष तक विद्याध्ययन किया, परन्तु स्कूलमे मुझे कही धर्म-शिक्षा नहीं मिली। जो चीज शिक्षकोके पाससे सहज ही मिलनी चाहिये, वह न मिली। फिर भी वायुमडलमे से तो कुछ न कुछ धर्म-प्रेरणा मिला ही करती थी। यहा धर्मका व्यापक अर्थ करना चाहिये। धर्मसे मेरा अभिप्राय है आत्म-भानसे, आत्म-ज्ञानसे।
वैष्णव सप्रदायमे जन्म होनेके कारण बार-बार वैष्णव मदिर (हवेली) जाना होता था। परन्तु अुसके प्रति श्रद्धा न अुत्पन्न हुअी। मन्दिरका वैभव मुझे पसन्द न आया। मदिरोमे होनेवाले अनाचारोकी बाते सुन-सुनकर मेरा मन अुनके सम्बन्धमे अुदासीन हो गया। वहासे मुझे कोअी लाभ न मिला।
परन्तु जो चीज मुझे अिस मन्दिरसे न मिली, वह अपनी धायके पाससे मिल गयी। वह हमारे कुटुम्बमे अेक पुरानी नौकरानी थी। अुसका प्रेम मुझे आज भी याद आता है। मैं पहले कह चुका हूं कि मै भूत-प्रेत आदिसे डरा करता था। अिस रम्भाने मुझे बताया कि अिसकी दवा रामनाम है। किन्तु रामनामकी अपेक्षा रम्भा पर मेरी अधिक श्रद्धा थी। अिसलिअे बचपनमे मैने भूत-प्रेतादिसे बचनेके लिअे रामनामका जप शुरू किया। यह सिलसिला यो बहुत दिन तक जारी न रहा, परन्तु जो बीजारोपण बचपनमे हुआ, वह व्यर्थ न गया। रामनाम जो आज मेरे लिअे अेक अमोघ शक्ति हो गया है, अुसका कारण अुस रम्भाबाअीका बोया हुआ बीज ही है।..."(पूरा पढ़ें)
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पूर्ण पुस्तक
अहिल्याबाई होलकर गोविन्दराम केशवराम जोशी द्वारा रचित मराठा मालवा साम्राज्य की होलकर साम्राज्ञी अहिल्याबाई होलकर की जीवनी है जिसका प्रकाशन १९१६ ई. में हुआ था।
"महाराष्ट्र देश भारत के दक्षिण भाग में है। इसके उत्तर की ओर नर्मदा नदी, दक्षिण में पुर्तगीजो का देश, पूर्व में तुंगभद्रा नदी और पश्चिम में अरब की खाड़ी है। इस देश के रहने वाले महाराष्ट्र अथवा मरहठे कहलाते हैं। जिस समय औरंगजेब बादशाह सारे भारतवर्ष में हिंदू राज्यों का नाश करने में लगा हुआ था, उस समय इसी महाराष्ट्र कुल के एकमात्र वीरशिरोमणि जगतप्रख्यात महाराज शिवाजी ने सारे भारत में एक नवीन हिंदू राज्य स्थापित किया था। इनके साथ ही महाराष्ट्र देश में और भी अनेक वीर हुए थे और वे वीर भी शिवाजी की नाई अति सामान्य वश में जन्म लेकर अपने अपने उद्योग और वाहुबल से एक एक राज्य और राजवंश की प्रतिष्ठा कर गए हैं। इन अनेक वंशों में से आज दिन तक भारतवर्ष में कई राज्य वर्तमान हैं। इनही वीर पुरुषों में एक साहसी बहादुर और योद्धा मल्हारराव होलकर भी हुए हैं और “श्रीमती महारानी देवी हिल्याई” इन्हीं मल्हारराव होलकर की पुत्रवधू थी।..."(पूरा पढ़ें)
सहकार्य
- संपादनोत्सव- विकिस्रोत:सामग्री संवर्द्धन संपादनोत्सव/जुलाई 2024
- शोधित की जा रही पुस्तक:
- Kabir Granthavali.pdf [९२१ पृष्ठ]
- जायसी ग्रंथावली.djvu [४९८ पृष्ठ]
- रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf [४७१ पृष्ठ]
रचनाकार
चतुरसेन शास्त्री (26 अगस्त 1891 — 2 फ़रवरी 1960) हिंदी भाषा के उपन्यासकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:
- आग और धुआं, औपनिवेशिक दौर के भारत के इतिहास पर आधारित उपन्यास
- वैशाली की नगरवधू, आम्रपाली के जीवन पर आधारित उपन्यास
- देवांगना, आस्था और प्रेम का धार्मिक कट्टरता और घृणा पर विजय का उपन्यास
- धर्म के नाम पर, धर्म के नाम पर की जाने वाली कुरीतियों पर प्रहार करता निबंध-संग्रह
- मेरी प्रिय कहानियाँ, कहानी संग्रह
रबीन्द्रनाथ ठाकुर या रबीन्द्रनाथ टैगोर (7 मई 1861 — 7 अगस्त 1941) नोबल पुरस्कार विजेता बाँग्ला कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, दार्शनिक और संगीतकार हैं। विकिस्रोत पर उपलब्ध इनकी रचनाएँ:
- स्वदेश (1914), निबंध संग्रह
- राजा और प्रजा (1919), निबंध संग्रह
- विचित्र-प्रबन्ध (1924), निबंध संग्रह
- दो बहनें (1952), हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित उपन्यास।
आज का पाठ
"जब चित्रकार और प्रकृति का सम्बन्ध प्रेमी और प्रेयसी का है तो प्रेमी अपनी प्रेयसी को क्षण भर के लिए भी आँखों से ओझल नहीं कर सकता और अकस्मात् यदि उसकी प्रेयसी को दुःख होता है, चोट पहुंचती है, तो वह उसे कदापि नहीं सहन कर सकता। उसकी प्रेयसी को चोट उसके ही भाई-बन्धु लगा सकते हैं। जापान में एटम बम गिरा। हिरोशिमा की सारी प्रकृति नष्ट-भ्रष्ट हो गयी। पिछले महायुद्ध में करोड़ों मनुष्य काल-कवलित हुए, घायल हुए और कुरूप हो गये। बीमारी, महामारी, भूख और तड़प ने लोगों को जर्जर कर दिया। सुकुमार बच्चों, कोमल युवतियों और अनेकों प्राणियों की सुन्दरता छिन गयी। यह सब किसने किया? मनुष्य ने अपनी सुन्दरता को अपने आप बिगाड़ लिया। कोई कलाकार क्या कभी ऐसा कर सकता है? या सोच सकता है? वह इसे कभी सहन नहीं कर सकता और यदि सब में यही कलाकार की भावना हो तो ऐसे कुरूप दृश्य देखने का कदाचित् ही किसी को अवसर मिले।..."(पूरा पढ़ें)
विषय
- हिंदी साहित्य — कविता, उपन्यास, कहानी, नाटक, आलोचना, निबंध, आत्मकथा, जीवनी, भाषा और व्याकरण, साहित्य का इतिहास
- समाज विज्ञान — दर्शनशास्त्र, इतिहास, राजनीति विज्ञान, भूगोल, अर्थशास्त्र, विधि
- विज्ञान — प्राकृतिक विज्ञान, पर्यावरण
- कला — संगीत
- अनुवाद — संस्कृत, तमिल, बंगाली, अंग्रेजी
- विविध — ग्रंथावली, संघ लोक सेवा आयोग प्रश्न पत्र, दिल्ली विश्वविद्यालय प्रश्न पत्र
- सभी विषय देखें
आंकड़े
- कुल पुस्तकें = ५०३
- कुल पुस्तक पृष्ठ = १,६४,१८१
- प्रमाणित पृष्ठ = १२,५४१, शोधित पृष्ठ = ७१,७३१
- समस्याकारक = १०, अशोधित = ८९,६९५, रिक्त = २,७४५
- सामग्री पृष्ठ = ५,८०८, परापूर्ण पृष्ठ = ४३१७
- स्कैन प्रतिशत = १००%
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