Sunday 15 September 2024

जोहार अउ जय जोहार

"जोहार" अउ "जय जोहार"
   एक कहावत हे- 'अड़हा बइद परान घातका'। माने अड़हा कहूं बइद ह होगे, त मरीज के मरे बिहान हे। ठउका इही किसम कहूं जे मन भाखा खातिर कारज करत हें, अउ उहू मनला भाखा अउ ओकर ले जुड़े परंपरा अउ संस्कृति के समझ नइए त उहू भाखा के मरे बिहान कस हे।
    अभी जे मन हमर भाखा के नाव म एती-वोती कूदत हें, वोमा के कतकों जब मोर संग भेंट होथे, त कहि परथें-"जय जोहार" भोले जी। मैं अतका म टमड़ डारथंव के भाखा के नाव म बिल्लस खेलइया ए लोगन के भाखा अउ संस्कृति के संबंध म कतका ज्ञान हे।
    अरे भई, 'जोहार' शब्द ह संबोधन खातिर अपन आप म पूर्ण शब्द आय, वोला अलग ले ककरो पंदोली के जरूरत नइए। जइसे- 'नमस्कार' या 'प्रणाम' ल ककरो जरूरत नइ परय। जोहार के मतलब ही नमस्कार करना, प्रणाम करना या जयकार करना होथे। जइसे हम जय नमस्कार या जय प्रणाम नइ काहन वइसने जय जोहार कहे के भी जरूरत नइए। अभिवादन खातिर सिरिफ "जोहार" कहना काफी हे।
       गाँव म परंपरा हे- जब देवारी पइत पहाटिया मन मड़ई उठाए के बेरा सबले पहिली गाँव के गंउटिया, सरपंच या सियान ल पहिली सम्मान दे के परंपरा निभाथें, त उन कहिथें- 'चलव गा पहिली दाऊ ल, मंडल ल, या सरपंच ल जोहार लेथन, तेकर पाछू दइहान या अउ कोनो आयोजन ठउर कोती जाबो'।
     असल म 'जोहार' शब्द ह 'जय' अउ 'हर' शब्द के मेल ले बने हे, जेकर अर्थ ही होथे 'हर' अर्थात शिवजी के जयकार करना. हमर ए भुइया ह जुन्ना बेरा ले बूढ़ादेव के रूप म शिव उपासक अंचल रहे हे, तेकर सेती वोकर जयकार करत ए 'जोहार' शब्द के माध्यम ले अभिवादन करत चले आवत हे.
    हमर देश के पहला महिला आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी जब अपन पद के शपथ ग्रहण लीन हें, तभो उन "आप सभी को मेरा जोहार" कहे रिहिन हें. हमर देश म जतका भी जगा अभिवादन खातिर जोहार शब्द के प्रयोग करे जाथे, सबो जगा बिन काकरो पंदोली के आरुग 'जोहार' ही कहे जाथे.
सबो झनला जोहार🙏🌹😊
-सुशील भोले-9826992811

Monday 9 September 2024

कोंदा भैरा के गोठ-24

कोंदा भैरा के गोठ-24

-हमर रायपुर के महादेव घाट वाले मंदिर ल अब मंदिर बोर्ड ले लेके जम्मो जगा हाटकेश्वरनाथ कहे, बोले अउ लिखे जाही जी भैरा.
   -ए तो बने बात आय जी कोंदा, कोनो भी जगा या लोगन के नॉव ल शुद्ध रूप ले उच्चारण करना चाही.. वइसे भी हमर पुरखा मन एला हाटकेश्वरनाथ ही बोलंय, फेर लोगन के बोलचाल म धीरे धीरे एकर हा शब्द ले आ के मात्रा ह लुप्त होवत हटकेश्वरनाथ होगे रिहिसे. 
   -हव जी सही आय.. पहिली ए मंदिर जगा अबड़ सोना रहिसे कहिथें.. सोना ल हाट घलो कहे जाथे, एकरे सेती ए मंदिर म बिराजे महादेव ल हाटकेश्वरनाथ कहे जावय.
   -बछर 1402 ई. म ब्रम्हदेव राय के शासन काल ए मंदिर ल हाजीराज नाइक ह बनवाए रिहिसे. मान्यता हे के हैहयवंशी राजा ब्रम्हदेव राय ह ए जगा के जंगल म शिकार खेले बर आए रिहिसे त ए शिवलिंग ल नदिया म बोहावत देखे रिहिन हें, जेला उन नदिया के खंड़ म स्थापित करवा दिए रिहिन हें.

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-श्रेष्ठ साहित्य के श्रेणी म कल्पना के समुंदर म उभुक-चुभुक कूदत लेखक भर मन के रचना ह नइ आवय जी भैरा, भलुक अनगढ़ अपरिपक्व हाथ ले लिखे जिनगी के कटु सत्य मन घलो आथे.
    -तोर कहना वाजिब हे जी भैरा, भलुक जिनगी के वास्तविक दुख-पीरा ह असली साहित्य आय.. अब तिरुवनंतपुरम के झुग्गी बस्ती म रहइया धनुजा के ही लिखे किताब 'चेंगलचूलायिले एन्ते जीवितम' माने चेंगलचूला म मोर जीवन. ए किताब ल कन्नूर विश्वविद्यालय के बीए अउ कालीकट विश्वविद्यालय के एमए के पाठ्यक्रम म पढ़ाए जाथे.
    -वाह भई.. ए तो गरब के लाइक बात आय. 
    -हव जी.. ए किताब के लेखिका धनुजा कुमारी ह आज घलो अंबालामुक्का के रवि नगर के गली मन म कचरा बीने के बुता करथे. अपन जिनगी के संघर्ष के संगे-संग जाति के आधार म मिले पीरा ल बिना कल्पना के सहारा लिए लिखे हे, एकरे सेती अभी राज्यपाल ह अपन निवास म बला के सम्मानित करिस हे, अउ मजेदार बात जानथस.. सम्मान होय के पहिली तक वोला ए बात के जानकारी नइ रिहिसे के वोकर लिखे किताब ल दू विश्वविद्यालय मन म पढ़ाए जाथे.

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-कतकों मठ, मंदिर अउ पंथ म ए देखे ले मिलथे जी भैरा के गुरु के लइका मन ही उहाँ के नवा गुरु पदवी ल पोगरा लेथें.
   -हव कतकों जगा अइसन देखे ले मिलथे जी कोंदा.. फेर कतकों जगा इहू देखे म आथे के उहाँ के गुरु के योग्य शिष्य ल गुरु के आसन म बइठार दिए जाथे.
   -हव अइसनो देखब म आथे, अउ मोला लागथे के योग्यता के आधार म गुरु के पदवी ल देना ह जादा बने बात आय. 
   -सही आय जी.. कर्म के मापदंड म ही अइसन व्यवस्था होना चाही, काबर ते हमन कतकों जगा अइसनो देखे हावन, जेमा कहे बर तो कोनो मनखे ल उहाँ गुरु बना के बइठार दिए जाथे, फेर करम कमई अउ तप जप के माध्यम ले वोला देखबे त वो ह अनफभिक जनाथे.
   -सही आय जी.. सिरिफ गुरु के कुल म जनमे ले या उंकर वंशज होय भर म कोनो भी मनखे ह गुरु बने के योग्य नइ हो सकय. खासकर अध्यात्म म तो बिल्कुल नहीं.

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-अब बरखा रानी के बिदागरी के दिन आगे जी भैरा.. फेर तैं जानथस का हमर छत्तीसगढ़ म सबले जादा बरसा कहाँ होथे? 
   -सामान्य ज्ञान के किताब म पढ़े रेहेंव तेकर मुताबिक बीजापुर म सबले जादा बरसा होथे जी कोंदा.
   -ठउका कहे संगी.. एला एकरे सेती हमर छत्तीसगढ़ के चेरापूंजी घलो कहे जाथे. अभी छत्तीसगढ़ म 23 अगस्त तक जतका बरसा होय हे बीजापुर म वोकर ले दुगुना बरसा हो चुके हे.
   -वाह भई..! 
   -हव.. रायपुर मौसम विभाग म पदस्थ विज्ञानी के कहना हे के जब बंगाल के खाड़ी म कोनो सिस्टम बनथे, तब हवा चल के अरब सागर डहार जाथे, ए बेरा हवा ह बैलाडीला के पहाड़ी म टकरा के द्रोणिका असन बुता करथे, एकरे सेती बीजापुर जिला म सबले जादा बरसा होथे, एमा अबूझमाड़ के जंगल के घलो सहयोग होथे, काबर ते जंगल ह बादर मनला अपन डहार आकर्षित करथे.
   -सही आय जी.. जंगल-झाड़ी, डोंगरी-पहार मन बादर ल अपन डहार आकर्षित करथे, फेर दुर्भाग्य देख हमन विकास के डोंगा म सवार होके एकरे मन के उजार करत हन!

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-मैं कतकों झनला देखथौं जी भैरा.. वो ह कोनो मनखे के अच्छाई अउ सुग्घर असन बुता मनला छोड़ के वोकर दोष देखई म ही अपन बेरा पहवावत रहिथे.
   -हव कतकों झन अइसन होथे ना जी कोंदा.. अइसने मनला छिद्रांवेषी प्रवृत्ति के लोगन कहे जाथे. असल म ए मन खुद बुराई के भंडार होथे, तेकरे सेती उंकर साकारात्मक ऊर्जा के क्षरण होथे.. वोकर खुद के विकास ह ढेरियाए असन हो जाथे. अइसने मनला देखत चाणक्य ह केहे रिहिसे- मनखे के अइसन प्रवृत्ति ह कभू अपन भीतर के सद्गुण के विकास नइ होवन देवय.. परिणामस्वरूप वोकर मन, वाणी अउ कर्म तीनों कलुषित हो जाथे.
   -होबेच करही संगी.. जे मनखे ह आने के एती-तेती म बूड़े रइही, वोला अपन बढ़वार के सोचे गुने के बेरा कहाँ मिल पाही?

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-हमन प्राचीन ऐतिहासिक नगरी आरंग के बारे म तो जानबेच करथन जी भैरा के उहाँ के राजा मोरध्वज / ताम्रध्वज के बेरा म भगवान कृष्ण ह अर्जुन संग इहाँ आए रिहिन हें अउ राजा जगा अपन बेटा ल आरा म काट के दान करे के रूप म परीक्षा लिए रिहिन हें.
   -ए प्रसंग ल तो पूरा दुनिया जानथे जी कोंदा.. राजा के द्वारा अपन बेटा के अंग काटे के सेती ही ए नगरी ल आरंग के नॉव ले जानथन.
   -ठउका कहे संगी.. द्वापर युग के वो बेरा म हमर अभी के राजधानी रायपुर घलो तब बसगे रिहिसे.
   -हव..रायपुर घलो जुन्ना शहर आय.. रामायण अउ महाभारत दूनों काल म एकर उल्लेख मिल जाथे.
   -हव जी.. रतनपुर के राजा राजसिंह के आश्रित कवि गोपाल मिश्र ह अपन ग्रंथ 'जैमिनि अश्वमेघ' (1694 ई.) म मोरध्वज के कथा लिखे हे, जेमा एकर उल्लेख मिलथे-
'मणिपुर से हम चल्यो सुवेश। मोरध्वज के देखत देश।। कृष्ण सहित प्रद्युम्न बुद्ध केतु। सब भूपति सो करके हेतु।। प्रबल सैन्य समिति बहु भाई। तबहिं रायपुर पहुंच्यो भाई।। जीते सु राज अनेक बढ़े। उनक सु अमित आनन्द उर। दोउ बाज राज औचक मिल। सुसैन्य टिके सब रायपुर।।

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-कोनो मनखे कुछू नवा करे खातिर मन म ठान लेवय त उमर ह वोकर रद्दा म कभू अटघा नइ डारय जी भैरा.
   -सिरतोन आय जी कोंदा.. अब कालेच के बात ल देख लेना दुरुग जिला के गाँव अहिवारा के 67 बछर के मूलचंद साहू ल अपन लोग-लइका मन के बर-बिहाव कर के हरहिंछा हो लेइस, त फेर दौड़े के शुरुआत करीस अउ आज 67 बछर के उमर म घलो वो ह राष्ट्रीय प्रतियोगिता म भाग लेथे.. अउ सिरिफ भाग भर नइ लेवय संगी अभी तक वो ह दू ठ गोल्ड मेडल घलो जीत डारे हे. ए बछर हमर छत्तीसगढ़ शासन डहर ले मूलचंद जी ल खेल दिवस के बेरा म शहीद विनोद चौबे सम्मान ले सम्मानित करे गिस.
   -हव जी लोगन बताथें के मूलचंद जी अभी रोज 8 किलोमीटर के दौड़ लगाथे एकरे सेती गाँव के लइका मन वोला मिल्खा दादा कहिथें.
   -सही आय जी.. मूलचंद जी के कहना हे के वोमन 80 बछर के उमर तक दौड़तेच रइहीं.

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-हमर इहाँ के हर परब के संबंध खेती किसानी ले जुड़े होय के संगे-संग अध्यात्म ले घलो राहय जी भैरा.. ए बात अलग हे के हम वोकर मूल स्वरूप ल भुलावत हावन.
   -तोर कहना वाजिब आय जी कोंदा.. हमन अपन मूल ल भुलावत हावन तेन तो हइच हे, अलहन असन बात ए आय के अंते देश-राज ले आए लोगन के पछलग्गू बनत उंकर जम्मो चरित्तर ल अपन मुड़ म खपलत जावत हन. अब ए पोरा परब ल देख ले, एकर हिंदी करण करत 'पोला' कहे ले धर लिए हावन, जबकि पोला कहे म तो अर्थ के अनर्थ हो जाथे. 
   -हव भई अइसने ए ह धान के पोर फूटे के या पोठरीपान धरे अउ वोला सधौरी खवाए के परब तो आएच, फेर ए ह भोलेनाथ के मयारुक सवारी नंदीश्वर के जन्मोत्सव परब घलो आय. एकरे सेती ए दिन घरों घर माटी के नंदिया बइला के पूजा करथन. ठेठरी ल जलहरी अउ खुरमी ल शिवलिंग के आकार म बना के पूर्ण शिवलिंग स्वरूप म वोला अर्पित करथन. 
   -हव जी पहिली एकरे सेती ए दिन नंदी महराज के स्वरूप गोल्लर ढीले के परंपरा रिहिसे. गोल्लर के पीठ म या जॉंघ म भोलेनाथ के त्रिशूल के चिनहा अॉंक के वोला ढीले जाय, जेला गाँव भर के लोगन देवता बरोबर मानंय.

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-मोला एक बात समझ नइ आवय जी भैरा.. लोगन कहिथें न.. के गंगा म नहाए ले लोगन के पाप धोवा जाथे कहिके.. आखिर अइसे कहिसे होवत होही? 
   -पाप ह गंगा म नहाए भर ले नइ धोवावय जी कोंदा.. अइसे म तो कर्मगत जे व्यवस्था हे, तेकर तो महत्व ही खतम हो जाही.. हाँ भई गंगा म नहाए ले मन म उठइया विचार जरूर शुद्ध होवत होही.. अउ फेर मन के शुद्ध होय के पाछू लोगन के कर्म सुधरत जावत होही.. अउ फेर कर्म के सुधरे ले तो सब दोष अउ पाप के नाश होतेच होही.
   -हाँ भई अइसन होवत होही.. काबर ते कोनो भी पवित्र जगा म जाए के महत्व तो होबेच करथे, जइसे हमन अभी माता कौशल्या के धाम गे रेहेन, फेर कहूँ नहाय धोय भर म पाप नइ धोवाय संगी.

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-चाहे कुछू बात होवय जी भैरा.. घर ले बाहिर होटल ढाबा मन म नता, व्यवहार अउ नेंग के नॉव म कतकों कप चाय पी ले फेर अपन घर म देशी गुड़ म डबका के बनाय लाल चाय म मोला जेन मन-अंतस जुड़ाय कस गुरतुर जनाथे, तेन अउ कहूँ नइ जनाय.
   -महतारी के हाथ म चुरे अउ परोसे भात म जेन मया-दुलार अउ आनंद रहिथे, तेन होटल ढाबा म कहाँ पाबे जी कोंदा.. ठउका इही बात चाय म घलो लागू होथे, फेर का करबे व्यवहार के नॉव म सबो ल ढकेले ले पर जाथे.
    -हव जी.. अब ए चाय ह तो हमर मन के बोली-बतरस, आपसी संबंध-व्यवहार, कोनो ल घर बलाए के बहाना या कोनो ल अपन कविता कहानी सुनाय सबो च के बहाना बनगे हवय. 
   -सही आय जी, फेर तैं जानथस.. हमर देश म ए चाय के शुरूआत बौद्ध भिक्षुक मन करे रिहिन हें, फेर वो मन चाय के पत्ती ल चगल के खावंय, तेमा उनला नींद झन आवय, अउ तहाँ ले फेर उन घंटों घंटों साधना म लीन रहि जावंय.
   -वइसे चाय ल कोनो भी रूप म ग्रहण करे के अपन फायदा तो हइच हे, विज्ञान घलो ए बात ल मानथे.

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-वइसे तो रायपुर के अस्तित्व रामायण अउ महाभारत काल ले हावय जी भैरा.. फेर एकर बड़का विकास के ताना बाना 14 वीं शताब्दी के आखिर म बुने गिस जब कलचुरी वंश के राजा हाजीराज ह खारुन नदिया के तीर हाटकेश्वर मंदिर अउ किला बनवाइस.
   -वाह भई.. माने वोकर पहिली रायपुर ह नान्हे ठउर रिहिसे कहिदे जी कोंदा.
   -हव जी.. वोकर पाछू फेर वोकर बेटा ह बूढ़ातरिया, महामाया मंदिर अउ महाराजबंद तरिया के बीच म किला बनाइस.
   -अच्छा.. ए किला के चिनहा तो अभी घलो दिखथे, ए जगा ल हमन ब्रम्हपुरी कहिथन.
   -हव बने चिनहे.. बूढ़ातरिया के राजघाट ले बछर 1402 म लिखे शिलालेख मिले हे, तेकर ले एकर इतिहास के जानबा होथे.
   - बने कहे.. महूं ह इहाँ के इतिहासकार मन के गजब संगति करे हावौं.. वो मन एकर बारे म बेरा बेरा म जानबा करावत रहिथें.

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-शिक्षक दिवस म छत्तीसगढ़ शासन डहार ले हर बछर तीन पुरखा साहित्यकार डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, डॉ. मुकुटधार‌ पाण्डेय अउ डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र के नॉव म तीन शिक्षक मनला सम्मानित करे जाथे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा ए तो बड़ा गरब करे के लाइक बात आय . 
    -हव जी.. फेर मैं काहत रेहेंव के हमर ए तीनों पुरखा साहित्यकार मन के चिन्हारी हिंदी के साहित्यकार के रूप म जादा हे, तेकर सेती अइसने इहाँ के तीन छत्तीसगढ़ी के पुरखा साहित्यकार मन के सुरता म घलो शासन ह तीन छत्तीसगढ़ी भाखा साहित्य खातिर बुता करत शिक्षक मनला सम्मानित करतीस त कइसे रहितीस? 
   -ए सुग्घर सुझाव हे जी संगी.. हिंदी के क्षेत्र म बुता करइया मनला हिंदी के चिन्हारी वाले मन के नॉव म अउ छत्तीसगढ़ी के चिन्हारी वाले साहित्यकार मन के नॉव म छत्तीसगढ़ी खातिर बुता करत मनला.
   -मोर मन म इहू बात आथे संगी के राज्योत्सव के बेरा पं. सुंदरलाल शर्मा सम्मान दिए जाथे ना.. ठउका अइसने आरुग छत्तीसगढ़ी खातिर बुता करइया साहित्यकार मनला घलो कोनो छत्तीसगढ़ी के पुरखा साहित्यकार के नॉव ले हर बछर सम्मान दे जाना चाही.

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-अब धीरे धीरे दुनिया ले भाखा विविधता सिराय के खतरा बाढ़त जावत हे जी भैरा.
   -पूरा दुनिया म कहाँ जाबे जी कोंदा.. हमर छत्तीसगढ़ ल ही देख ले.. इहाँ के कतकों भाखा मन के बोलइया मन खोजे म घलो मिले ले नइ धरय. 
   -एकर खातिर हमूं मन दोषी हावन संगी.. अब हमरे घर परिवार ल देख ले हम अपन लइका मनला महतारी भाखा म गोठियाय उनला सीखाय के बलदा हिंदी अंगरेजी म पुचकारत रहिथन.
   -सही आय जी.. अभी साइंस एडवांसेज म प्रकाशित पेपर म बताए गे हवय के दुनिया भर म सात हजार ले जादा भाखा हे, उंकर व्याकरण म भिन्नता हे, फेर ए मन कहूँ नंदावत जाहीं त हम  हमर इतिहास, हमर संज्ञानात्मक क्षमता ल बिसर डारबोन. 
साइंस एडवांसेज म प्रकाशित पेपर म इहू बताय हे- हमन ग्रामबैंक के नॉव ले भाषा व्याकरण के एक बड़का डेटाबेस लॉन्च करे हावन, जेकर द्वारा भाषा के बारे म कतकों शोध प्रश्न के उत्तर दे सकथन अउ देख सकथन के कहूँ ए संकट ल रोके नइ सकबो त कतकों व्याकरणिक विविधता ल बिसर डारबोन.

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-छत्तीसगढ़ म एती वोती ले आवत संस्कृति मन के संघरे ले सब सॉंझर-मिंझर होवत जावत हे जी भैरा.
   -ए तो होनच हे जी कोंदा.. लोगन अपन-अपन देश-राज के संस्कृति संग आथें अउ उहिच ल इहाँ घलो जीयत रहिथें. आजे के नुआखाई परब ल देख ले.. ओडिशा ले लगे क्षेत्र के लोगन जे मन उत्कल संस्कृति ल जीथें आज ऋषि पंचमी के दिन मनावत हें, जबकि छत्तीसगढ़ के मूल निवासी समाज के मन इही नवाखानी परब ल कुंवार महीना के अंजोरी नवमी के मनाहीं, त उत्तर भारत ले आए लोगन मन इहीच परब ल कातिक महीना म सुरहुत्ती के बिहान दिन अन्नकूट के रूप म मनाहीं. फेर उद्देश्य तो सबो के एके आय.. अपन नवा फसल ल अपन ईष्टदेव ल समर्पित करना.
   -सही आय संगी एकर दिन बादर ह भौगोलिक स्थिति के मुताबिक तय हे अइसे मोला जनाथे.. समुद्र ले लगे क्षेत्र म मानसून जल्दी आ जथे, त उहाँ फसल घलो जल्दी आ जथे. बीच के भाग म थोरिक अबेर म मानसून आथे त एती थोरिक देरी म फसल आथे. ठउका अइसने च भंडार मुड़ा म अउ थोरिक देरी म मानसून जाथे त उहाँ फसल थोरिक अउ अबेर म आथे, तभे तो जल्दी वाले क्षेत्र म भादो म, मझोला वाले क्षेत्र म कुंवार म अउ अबेर वाले क्षेत्र म कातिक म नवाखानी/नवाखाई मनाथें.

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-राजनीति ह नवा-नवा महापुरुष अउ दिवस गढ़त रहिथे जी भैरा.
   -कइसे का होगे जी कोंदा? 
   -हमर देश म चौधरी चरणसिंह के जनमदिन 23 दिसंबर ल राष्ट्रीय किसान दिवस के रूप म मनाए जाथे ना.. फेर अब एदे पौराणिक पात्र बलराम के जयंती ल 9 सितम्बर के राष्ट्रीय किसान दिवस मनाए जाही काहत हें.
   -फेर बलराम के जयंती ल ए मन हलषष्ठी के रूप म पहिली च ले मना डारे हें ना, त फेर अउ कहाँ ले के पइत जयंती आगे? 
   -अरे.. राजनीति ह जेन कर लय.. सब माफी हे वोकर मन बर. 
   -तभो ले जी.. राजनीतिक मनखे के बलदा पौराणिक पात्र लेना रिहिसे, त राजा जनक ल लेना रिहिसे, जेकर नॉंगर जोते म माता सीता ह अवतरे रिहिसे.
   -टार बुजा ल मैं ए राजनीति वाले मन के चोचला म नइ परंव.. हमर मन के असली किसान दिवस तो अक्ती परब ह आय, जे दिन हमन किसानी के शुरूआत करथन.. बिहनिया बेरा बइगा बबा के सिद्ध करे धान के बिजहा ल अपन खेत म बोथन.. मूठ धरथन अउ संझा बेरा सौंजिया, पहाटिया जइसन पौनी पसारी अउ खेतिहर श्रमिक मन के नियुक्ति करथन.

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-ले देख ले जी भैरा सुनीता विलियम्स ह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन ले फेर नइ लहुट पाइस काहत हें.
   -हव जी कोंदा जेन यान ह उनला लाने बर गे रिहिसे तेला जुच्छा आगे काहत हें.
   -फेर मोला ए समझ म नइ आवय संगी के वो मन अंतरिक्ष म कहाँ ले हवा पानी पावत होहीं, इहाँ धरती म तो इंकर बिना चार घड़ी के पहवई ह घलो लट्टे पट्टे हो जाथे, आखिर जरूरत तो उहों परत होही ना? 
   -जरूरत कइसे नइ परही जी.. अमेरिका म अलबामा मार्शल फ्लाइट सेंटर के कार्टर ह एक जानकारी म बताय हे- हर अंतरिक्ष यात्री ल पीये अउ आने उपयोग खातिर रोज 12 गैलन पानी लागथे, तेकर बर नासा ह उहाँ एक जल प्रणाली बनाय हे, जेन ह पर्यावरण ले उपलब्ध पीये के लाइक तरल पदार्थ के आखिरी बूंद तक ल नीचो लेथे. एकर छोड़े अंतरिक्ष यात्री मनला फिल्टर पानी मिलथे, जेमा शॉवर के पानी घलो शामिल रहिथे.
   -वाह भई.. शॉवर के पानी मतलब नहाय-धोय सबो ह! 
   -हव.. वो सबो ल फिल्टर कर के उपयोग के लाइक बनाए जाथे, जेकर स्वाद ह बोतल बंद पानी बरोबर रहिथे.
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Saturday 7 September 2024

आदि धर्म जागृति संस्थान काबर..?

आदि धर्म जागृति संस्थान काबर...?
    शोषण के बहुत अकन रूप होथे। हमन छत्तीसगढ़ राज आन्दोलन संग जुड़े राहन त राजनीतिक शोषण के बात करन। आने-आने राज ले आए लोगन हमर शासन-प्रसाशन के अधिकार म बइठगे हवंय अउ हमर अस्तित्व के, हमर चिन्हारी के संहार करत हें, हमर मुंह के कौंरा ल नंगावत हें।

    तब ये सपना देखे गे रिहिसे के जेन दिन छत्तीसगढ़ ह अलग राज के रूप म अपन स्वतंत्र चिन्हारी बना लेही, वो दिन इहां के जम्मो मूल निवासी मन के हाथ म इहां के जम्मो राज-काज आ जाही। तहां ले फेर जम्मो मूल निवासी मन के दिन बहुर जाही। इहां के बोली-भाखा म जम्मो काम-काज होही, पढई-लिखई होही, तब इहेंच के लइका मन जम्मो किसम के नौकरी-चाकरी म घलो अगुवा बन के बइठहीं।
    
    आज दू दशक ले आगर बेरा होगे हावय, फेर ए कोरी भर के बछर म घलो मूल निवासी वर्ग के कोरी भर मनखे घलोक ऊँचहा अउ ठोसहा पद म बइठे नइ दिखंय।उल्टा ये देखब म आवत हे, के जेकर मन के गुलामी ले मुक्ति खातिर राज आन्दोलन के नेंव रखे गे रिहिसे, तेकरेच मन के संख्या दिनों-दिन बाढ़तेच जावत हे।

    गुनान करव, एकर मूल कारन का आय? काबर आने क्षेत्र ले आए लोगन के पिछलग्गू बने ले हम बांचे नइ पावत हन? कम पढे़-लिखे मन के तो बात ल छोड़िच देवव, बड़े-बड़े पढ़ंता अउ गुनिक मन घलो इहीच गुलामी के रद्दा म हवंय। मैं जिहां तक गुन पाएंव, एकर असल कारन आय धार्मिक अउ सांस्कृतिक गुलामी। चेत करव, सिरिफ राजनीतिक नहीं, असल म धार्मिक अउ सांस्कृतिक गुलामी।

    आने-आने राज के मनखे धर्म गुरु के चोला ओढ़ के आथें, संग म उहेंच के लिखे पोथी-पतरा अउ जीवन शैली लानथें, तहां ले फेर राष्ट्रीयता अउ राष्ट्रीय धर्म के नांव म हमला अपन मायाजाल म फांस लेथें। तहां ले फेर हम बिना कुछू गुने-समझे उंकर पाछू धर लेथन। उन धर्म के आड़ म हमर जमीन-जायदाद, रोजी-रोटी, शासन-प्रशासन अउ हमर जीवन शैली म घलोक कब्जा कर लेथें। इही आय असल म हमर गुलामी अउ शोषण के मूल कारन।

    त गुनव, एकर ले बांचे खातिर का उपाय हे? जब हमर खुद के भाखा हे, हमर कला हे, हमर संस्कृति हे, त का हमर खुद के आध्यात्मिक जीवन शैली अउ पूजा-उपासना के पद्धति नइहे? निश्चित रूप ले हावय। अपन 21 बछर के साधना काल म मोला ए समझ म आइस, के हमर जगा तो सबकुछ हे। इहां के मूल संस्कृति एक सम्पूर्ण धर्म आय, एक सम्पूर्ण जीवन पद्धति आय। हमर जगा मौलिक जीवन शैली हे, पूजा-उपासना के विधि हे, त फेर हम धरम-संस्कृति के नांव म पर के पाछू काबर भटकत हावन? अपन खुद के जीवन शैली अउ उपासना विधि, जेला हमर पुरखा मन तइहा जुग ले धरे अउ जीयत आएं हें, उहीच ल फेर धो-उजरा के काबर नइ आत्मसात कर लेवन?

    "आदि धर्म जागृति संस्थान" के गठन अउ वोला मैदान म स्थापित करे के ये उदिम असल म उही सब गुलामी ले मुक्ति के रद्दा देखाय के एक नान्हे उदिम आय। मोला भरोसा हे, इहां के जम्मो चिंतक अउ गुनिक मनखे मन हमर ए बात ल समझहीं, अउ अपन संगे-संग जम्मो मूल निवासी मनला घलो एमा जोर के जम्मो किसम के गुलामी अउ शोषण ले मुक्ति पाहीं।

कतेक भटकहू पर के पाछू खुद धरव धरम के झंडा
पुरखा मन सम्हाल रखे हें जेन आदि काल के हंडा
भरे लबालब हे गुन म बस एला तुम कबिया लेवव
नइ परही फेर तुंहला कोनोच पंथ-प्रपंच के डंडा

-सुशील भोले
आदि धर्म जागृति संस्थान रायपुर 
मो/व्हा. 9826992811

Sunday 11 August 2024

कोंदा भैरा के गोठ-23

कोंदा भैरा के गोठ-23

-हमन भले ए गुनत रहिथन जी भैरा के धर्म ल नास्तिक किसम के लोगन मन ले खतरा हे कहिके, जे मन न देवी देवता के बात ल मानंय, न कोनो किसम के मंदिर देवाला या पाप पुण्य के गोठ ल.. फेर मोला जनाथे के धर्म ल असल खतरा धर्म के ठेकेदार मन ले हे, जे मन लोगन ल अंते-तंते गोठ म भरमावत अउ भटकावत रहिथें.
   -तोर कहना महूं ल वाजिब जनाथे जी कोंदा.. अभी जैन मुनि नरेश कुमार ह घलो अइसने कहिन हें. इहाँ के पटवा भवन म उन श्रद्धालु मनला संबोधित करत कहिन के धर्म के मूल विनम्रता हे. धर्म हमला व्यक्ति ले मुक्ति डहार ले जाथे. फेर आज जइसे तिजोरी म धराय धन ल चोरहा ले जादा ओकर रखवार ले खतरा जनाथे, ठउका अइसने च नास्तिक मन ले जादा धार्मिकता के चद्दर ओढ़े धर्म के ठेकादार मनले धर्म ल जादा खतरा हे.
   -सही आय जी हमला ढोंगी पाखंडी अउ सच्चा संत महात्मा के अंतर ल समझे बर लागही, तभे धर्म के उज्जर रद्दा म आगू बढ़ पाबो.
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-गणेश-दुर्गा के पंडाल सजावत बेरा तीर-तखार के पेड़ मनला घलो पेंटिंग कर डारत रेहे हावन ना जी भैरा.. अब अइसन मनले बॉंचे बर लागही संगी आवास एवं पर्यावरण विभाग ह आदेश निकाले हे.
   -हव जी कोंदा.. अब एती-तेती के पेड़ मनला नइ पोतन, फेर अइसन काबर संगी? 
   -विशेषज्ञ मन के कहना हे के पेंट पोते ले पेड़ ह आक्सीजन अउ कार्बन डाइऑक्साइड के आदान-प्रदान नइ कर पावय काबर ते पेड़ ह अपन छाला म बने छोटे छोटे छेदरा मन के माध्यम ले ही अइसन करथे, जे ह पेंट के पोताय ले तोपा जाथे. एकर ले वो पेड़ के मरे के संभावना घलो बाढ़ जाथे, काबर ते पेंट के जहरीला रसायन मन घलो पेड़ म निंग जाथे.
   -खैर.. हमन तो कभू कभार ही पेड़ ल पोत परथन जी फेर सरकारी विभाग वाले मन तो फलाना-ढेकाना के आयोजन के नॉव म चारों मुड़ा पोतते च रहिथें
   -हव.. अभी सिरपुर महोत्सव म सड़क के दूनों मुड़ा के पेड़ मनला चुकता पोत डारे रिहिन हें, उही ल देख के एक पर्यावरण प्रेमी के शिकायत म ए आदेश ल निकाले गे हवय.
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-आज कतकों बछर ले पेरावत न्यायिक प्रक्रिया ल देखबे त पहिली हमर सियान मन कोनो भरोसा के मनखे ले मध्यस्थता करवा के निर्णय करवा लेवत रिहिन हें, तेने ह बने रिहिसे तइसे लागथे जी भैरा.
   -हव सही आय जी कोंदा.. आज के अदालती चक्कर म मनखे के पूरा जिनगी के संगे-संग धन-दौलत सबे खप जाथे, तभो न्याय नइ मिल पावय.
   -हव जी.. हमर देश के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ह घलो अभी लोक अदालत सप्ताह के मौका म अइसने काहत रिहिन हें. उन काहत रिहिन हें के लोक अदालत म कतकों बेरा के चलत मामला ला सौहार्दपूर्ण तरीका ले निपटा सकथन. 
   -हमर इहाँ मध्यस्थता के माध्यम ले मामला ल निपटाय के प्रक्रिया तो तइहा जुग ले चलत हे जी.. भगवान राम ह बालिपुत्र अंगद ल रावण जगा भेजे रिहिसे नहीं आपसी समझौता ले मामला निपटाए बर.. ठउका अइसने भगवान‌ कृष्ण ह घलो कौरव पाण्डव के बीच युद्ध के पहिली पॉंच गाँव के मॉंग रखत मामला निपटाय के कोशिश करे रिहिसे नहीं. ए बात अलग आय के आगू वाले मन युद्ध ल ही समाधान के रद्दा चुन डारे रिहिन हें.
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-आरक्षण के नॉव म बंगलादेश म तख्तापलट होगे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. फेर उहाँ के आरक्षण के मापदंड अउ हमर देश के आरक्षण के मापदंड अलग हे.
   -हाँ ए बात तो हे, उहाँ 1971 के बंगलादेश के आजादी के आन्दोलन म जे मन भाग लिए रिहिन हें, उंकर परिवार ल आरक्षण मिलत रिहिसे, फेर हमर इहाँ तो ए ह जाति के आधार म हावय.
   -कुछू के आधार म होवय संगी, फेर मोला जनाथे के एकर लाभ ह पात्र मनखे मन ले जादा अपात्र मनला मिल जाथे.
   -सही आय जी.. अब देखना हमर असन गतमरहा लोगन के परिवार ल आज तक न तो रोजगार म अउ न राजनीति के क्षेत्र म कोनो किसम के लाभ मिले हे, फेर जेकर मन के देंह-पॉंव ह पहिलीच ले रोठ-डांठ हे, ते मन आरक्षण के लाभ म अउ  भोगावत हें.
   -एकरे सेती तो अभी इहाँ के सुप्रीम कोर्ट ह आरक्षण म उप वर्गीकरण के बात कहे हे, तेमा सही म सबोच पात्र लोगन ल एकर लाभ मिल सकय. 
    -फेर राजनीति वाले मन तो वोकरो विरोध म जुरियाय असन जनावत हें जी!
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-अभी हरियाणा के स्कूल शिक्षा निदेशालय ह एक आदेश निकाले हे जी भैरा.. जेकर मुताबिक अवइया स्वतंत्रता दिवस ले उहाँ के जम्मो स्कूल मन म लइका मनला एक-दूसर ल अभिवादन करत बेरा गुड मॉर्निंग के बलदा 'जय हिंद' कहे बर लागही.
   -ए तो बढ़िया बात आय जी कोंदा.. मोर तो मानना हे के अइसन आदेश पूरा देश खातिर निकलना चाही, तेमा लइका मन के मन म नान्हे उमर ले ही देश भक्ति अउ राष्ट्रीय एकता के भाव पनपय. 
   -हव जी सही आय.. आज के जाति, धर्म अउ बोली-भाखा के नॉव म घर-फोरवा राजनीति के दुष्प्रभाव ले लइका मनला बचाय बर ए ह कारगर साबित होही.
   -सही आय जी.. नेताजी सुभाषचंद्र बोस के आजादी के आन्दोलन के बेरा म दिए गे ए नारा 'जय हिंद' ल जइसे आजादी के बाद हमर सशस्त्र बल मन द्वारा सलामी खातिर अपनाए गे हवय ठउका अइसने स्कूल के लइका मन के संगे-संग उहाँ जम्मो लोगन अभिवादन खातिर अपना लेवय.
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-हमर छत्तीसगढ़ म जंगली हाथी मन के उत्पात के अब तो रोजेच खबर आवत रहिथे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. आज 12 अगस्त के विश्व हाथी दिवस के बेरा म एक पर्यावरण प्रेमी ह एकर बारे म बतावत रिहिसे के एकर खातिर जंगल म कमतियावत दाना पानी के संगे-संग विभाग के जिम्मेदार मन घलो कारण हें. वो विशेषज्ञ के कहना हे के नर हाथी ल जब 10 ले 15 बछर के हो जाथे, त उनला वोकर खुद के परिवार ले बरपेली अलग कर के दूसर समूह या आने जंगल म छोड़ दिए जाथे, सिरिफ ए सेती के एकेच खून ले वंशवृद्धि झन हो सकय.. अइसन बेरा म वोकर संग कतकों किसम के जोर जबर्दस्ती घलो करे जाथे.
   -वाह भई... अपन परिवार ले बिछड़ के फेर वो हाथी कइसे करत होही? 
   -तैं खुदे गुन हमन कहूँ अपन परिवार के 10-15 बछर के लइका ल अलग कर देबो त वो जीए बर का-का करही? भइगे.. हाथी मन के घलो एती-तेती भटके अउ रार मचाए के इहू ह एक बड़का कारण आय.
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-राखी के मयारुक परब लकठियाथे तहाँ ले नवा-नवा जिनिस के राखी देखे ले मिल जाथे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. हमर छत्तीसगढ़ ल धान के कटोरा कहे जाथे, एकरे प्रतीक स्वरूप अभी एक धान कलाकार ह धान के दाना मनला सुग्घर असन सजा के राखी बनाय हे.
   -राजिम के एक नोनी ह तो इहाँ के साग-भाजी मन के बीजा मनला सुग्घर असन सजा के राखी बनावत रिहिसे, फेर ए सबले मयारुक अउ भावविभोर करइया बात ए आय संगी के राजनांदगाँव के अभिलाषा दिव्यांग विद्यालय के लइका मन देश के सीमा म तैनात जवान मन बर हर बछर राखी बना के भेजथें.
    -अच्छा..! 
   -हव जी पाछू 17 बछर ले इहाँ के लइका मन जे मन कोनो अस्थि बाधित हे, त कोनो दृष्टि बाधित हे.. कोनो कोनो के बौद्धिक विकास ही बने असन नइ हो पाए हे, तभो ए मन लगन अउ उत्साह के साथ राखी बनाय म भीड़े रहिथें. आठवीं के छात्रा साक्षी जेकर एक हाथ नइए, बताइस के वोहा एक हाथ ले राखी बनावय त सूत ह बिछल जावय, फेर धीरे धीरे अभ्यास करे ले अब 15-20 मिनट म एक राखी बना डारथे.
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-हमर पुरखा मन के चलाए परंपरा मन आज वैज्ञानिक रूप ले घलो वाजिब जनाथे जी भैरा.
   -वोमन अपन लंबा अनुभव के आधार म परंपरा मन ल चलाए हावंय जी कोंदा त कइसे नइ वाजिब जनाहीं? 
   -हव जी.. अब देखना हमर इहाँ एक पिता के संतान मन के आपस म बर-बिहाव नइ होवय.
   -हव नइ होवय.. भलुक अपन लहू के सग नता मनले घलो दुरिहा म बिहाव के परंपरा हे.. आज ए ह वैज्ञानिक रूप ले घलो वाजिब सिद्ध होगे हवय.. एके खून ले वंशवृद्धि करे म सिकलिन जइसन कतकों किसम के बीमारी के खतरा बाढ़ जाथे. तेकरे सेती हमर वन विभाग के अधिकारी मन घलो एकर चेत करथें, उहू मन जंगल के हाथी जइसन जानवर के नर ल 10-15 बछर के होइस, तहाँ ले वोकर परिवार ले अंते लेग के छोड़ देथे, तेमा एक खून ले वंशवृद्धि झन हो सकय. 
   -हव जी.. अइसने बेर्रा लइका मनला कइसे गोंहगोंह ले भोगावत हे काहत घलो सुने हावन ना? 
   -हौ.. आज इहू प्रमाणित होगे हावय, बेर्रा माने आज जे मनला हमन शंकर नस्ल कहिथन, वो मन सामान्य मन के मुकाबला जादा अउ जल्दी भोगाथे.
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-राजधानी रायपुर के हिरदय म बसे जयस्तंभ ल तो तैं जानते होबे जी भैरा? 
   -हव.. जानबे कइसे नहीं जी कोंदा.. हमर छत्तीसगढ़ के पहला शहीद वीर नारायण सिंह ल 10 दिसम्बर 1857 के इही जगा फॉंसी दिए गे रिहिसे.
   -हव सही आय.. एकरे सेती ए ठउर ल पूरा छत्तीसगढ़ ह गरब के साथ सुरता करथे अउ जानथे घलो.. फेर का तैं इहू जानथस के रायपुर म दू अउ जयस्तंभ हे? 
   -एकर जानबा तो अभी हमला नइहे संगी! 
   -असल म आजादी के गौरव के सुरता कराए बर रायपुर म तीन जगा जयस्तंभ के स्थापना करे गे रिहिसे, जेमा के लाखेनगर अउ खम्हारडीह म स्थापित करे गे आजादी के प्रतीक स्तंभ मनला उंकर मूल ठउर ले घुंचा के आन जगा मढ़ा दिए गे हवय, जिहां आज न तो कोनो जावय न उनला देखय.
   - अच्छा..! 
   -हव.. इतिहासकार डॉ. रमेन्द्रनाथ मिश्रा जी के कहना हे, के लाखेनगर अउ खम्हारडीह दूनों जगा के जयस्तंभ ल शहर के विकास के नॉव म आने जगा मढ़ा दिए गे हवय उनला उंकर मूल जगा म वापस लान के स्थापित करे जाना चाही.
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-छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग कार्यालय के स्थापना दिवस कार्यक्रम म ए बछर कोरी भर अकन के पुरती छत्तीसगढ़ी किताब मन के विमोचन होइस हे काहत रिहिन हें जी भैरा.
   -ठउका सुने हावस जी कोंदा.. अब छत्तीसगढ़ी भाखा म इहाँ के पारंपरिक विधा मन के संगे-संग आने भाखा मन के प्रचलित शैली अउ विधा मन म घलो लिखे जावत हे.
   -हव जी महूं ल आरो जनाय हे.. काली के स्थापना दिवस कार्यक्रम के बेरा मोला चारों मुड़ा ले आए छत्तीसगढ़ी के मयारुक मन दर्जन भर के पुरती किताब भेंट करीन हें.. उन सबो ला देख-पढ़ के मोला गजब निक अउ गरब जनाइस.. सबले बड़का बात ए आय संगी के वो जम्मो किताब मन के विधा अउ विषय सब अलगेच-अलग रिहिसे.. उन सबो ल पढ़ के अब भरोसा जागत हे के छत्तीसगढ़ी म घलो आने समृद्ध भाखा मन बरोबर पढ़े, गुने अउ सहेजे के लाइक साहित्य आवत हे अउ आवत रइही.. एक दिन छत्तीसगढ़ी घलो पूरा दुनिया म पॉंखी लगा के अपन सोर बगराही.
   -बगराही का.. बगरे के जोम बने माढ़गे हे.
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-आज 20 अगस्त के रेडियो प्रसारण दिवस के सेती मोला सुरता आवत हे जी भैरा.. अब मनोरंजन के कतकों साधन आगे हवय तभो रेडियो सुनई ह अभो निक जनाथे ना? 
   -सिरतोन आय जी कोंदा.. जइसे समाचार मन के सोर-खबर ले खातिर कतकों न्यूज़ चैनल आगे हवय, तभो अखबार ल पढ़े बिन मन नइ मानय तइसे केहे कस. 
   -हव जी.. मोला तब के सुरता हे संगी जब हमर गाँव म पारा भर म सिरिफ हमरे घर भर रेडियो रिहिसे. संझौती बेरा जब बॉंस गीत आवय, त रेडियो ल घर ले हेर के बाहिर के कुआँ पार म मढ़ावन, तहाँ ले पारा भर के लोगन जुरिया के सुनंय.
   -अइसने मोला अपन  पहला कविता प्रसारण के सुरता हे संगी.. वो बखत अभी असन कविता मनला रिकार्डिंग कर के नइ राखत रिहिन हें. तब जीवंत प्रसारण होवय. बरसाती भइया, बिसाहू भइया मन संग चौपाल कार्यक्रम म मोला बइठारे रिहिन हें, एती ले हमन बोलत जावन.. वोती लोगन ल रेडियो म सुनावत जावय, बाद म मोर पहला कहानी 'ढेंकी' के प्रसारण होइस, त वोला पहिली रिकॉर्ड करे गे रिहिसे.
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-मेडिकल क्रांति के चकाचौंध म भले हम अपन देशी चिकित्सा के फायदा ल बिसरत जावत हन जी भैरा, फेर आजो कहूँ वोला आजमा लेबे त हजारों रुपिया के दवई ह बिरथा जनाथे.
    -सिरतोन आय जी कोंदा.. अब देख ले पंदरही आगू मैं ह कोला बारी तनि जावत बेरा बिछल के गिर परे रेहेंव.. मेडिकल स्टोर ले डाॅक्टर के कहे मुताबिक कतकों असन गोली-दवई खाएंव.. का-का क्रीम मलहम कहिन तेनो ल बोथेंव, फेर पीरा ह जस के तस जी.
   -अच्छा.. एको कनिक उरकत नइ रिहिसे कहिदे.
   -कहाँ पाबे संगी.. आखिर म अपन डोकरी दाई के देशी तरीका के जोम जमाएंव.. अच्छा बड़का असन एक ठ गोंदली ल कुचर के कपड़ा म लपेट के दू ठन पुतका बनाएंव अउ तावा म सरसों तेल ल बने कड़का के चटा-चट जरे असन सेकेंव, तब जा के एदे हेलमेल बरोबर रेंगे पावत हौं.
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-बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ल एक आगर चार कोरी बछर होय के बाद घलो काम करतेच रेहे के सेती कतकों झन हुदरे असन प्रश्न पूछ डारथें जी भैरा.
   -काम तो लोगन ल जिनगी के आखिरी साँस तक करतेच रहना चाही जी कोंदा एमा पूछे सरेखे के का बात हे.
   -हव जी सही आय लोगन ल जिनगी भर अपन काम बुता म सक्रिय रहना चाही.. अमिताभ बच्चन ह अइसन प्रश्न पूछइया मनला अपन ब्लाॉग म जवाब घलो अइसनेच दिए हें, उन लिखे हें- काम करव अउ वोकर कारण ल खुद जान जावौ.
   -एकदम सिरतोन लिखे हे जी.. वो सरलग अपन काम म सक्रिय रहिथे तेकरे सेती आज तक स्वस्थ अउ टन्नक जनाथे, उहू कहूँ आने जॉंगरचोट्टा मन बरोबर काम बुता बर अलाली करतीस, त खटिया सेवई म ही वोकर जिनगी पहावत रहितीस अउ खटिया म ही पच के सिरा जातीस.
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Tuesday 30 July 2024

कोंदा भैरा के गोठ-22

कोंदा भैरा के गोठ-22

-आज के वैज्ञानिक युग म भले लोगन दैवीय आस्था अउ चमत्कार ल कमती पतियाथें, तभो एला साक्षात देखे जा सकथे जी भैरा.
   -ए बात ल तो महूं आकब करे हौं जी कोंदा.. कतकों अइसन मंदिर देवाला अउ सिद्ध स्थल हे, जिहां लोगन जाथें अउ श्रद्धा के फल पाथें तब तो पतियाए बर लागथेच.
   -हव जी अइसने सक्ती जिला के जैजैपुर विकासखण्ड म कैथा नॉव के गाँव हे जिहां शेषनाग धारी भगवान शिव के मंदिर हे, एला बिरतिया बबा मंदिर घलो कहिथें. मान्यता हे के ए मंदिर म पूजा करे अउ परसाद खाए ले कइसनो जहरीला साॅंप के जहर ह उतर जाथे.
   -महूं अपन एक संगी ले इहाँ के महिमा सुने रेहेंव संगी.. वो बतावत रिहिसे के बिरतिया बबा मंदिर के प्रभाव के सेती ए गाँव वाले मनला कभू सॉंप बिच्छी नइ चाबय.
   -सही आय.. आने गाँव के मन घलो सॉंप के चाबे म कैथा गाँव जाथें अउ उहाँ के सरहद म प्रवेश करते माटी ल खवा देथें.. वो गाँव के माटी के खाए ले ही सॉंप के जहर उतर जाथे.
   -हव जी..नाग देवता के ए जगा बिराजे अउ आशीष दे के संबंध म बड़का कहानी बताथें... जिहाँ हर बछर नागपंचमी के दिन जबर मेला भराथे.
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-अभी हमर इहाँ ए देखे म आवत हे जी भैरा के कोनो मनखे कहूँ धरम परिवर्तन कर लेथे त वोकर गाँव वाले मन वो मनखे के मरे के बाद वोकर मृत देंह ल अपन गाँव म अंतिम संस्कार करे ले मना करथें.
   -हव जी कोंदा अभी बस्तर क्षेत्र म अइसन घटना बनेच देखे म आवत हे.. कोनो कोनो गाँव म तो अइसन घटना के चलत जबर मार-काट घलो देखे म आवत हे.
   -हव जी.. अइसन घटना के संबंध म अभी बिलासपुर हाईकोर्ट ह अपन निर्णय दिए हे के वो मरे मनखे ल अपन जन्मभूमि वाले गाँव म अंतिम संस्कार करे के संवैधानिक अधिकार होथे. हमर देश के संविधान के अनुच्छेद 21 म ए बात के स्पष्ट उल्लेख हे के मनखे ल सम्मान के साथ जीए के जेन अधिकार हे, वो ह वोकर मरे के बाद घलो लागू रहिथे, तेकर सेती वोकर मृत शरीर के अंतिम संस्कार वोकर गाँव म करे ले कोनो नइ रोक सकय.
   -अच्छा.. बने बात तो ए होही जी संगी के हमन मरे मनखे के अंतिम संस्कार खातिर झंझट करे के बलदा कुछू अइसन रद्दा निकालन तेमा लोगन ल धर्म परिवर्तन करे के जरूरते झन परय.. वो अपन मूल धर्म म ही मगन राहय.
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-अभी छत्तीसगढ़ सरकार ह अयोध्या जाके भगवान राम के दरस सेवा कर के आए हे जी भैरा.
   -ए तो निक बात आय जी कोंदा.. हमर मन के तो वोकर संग ममा-भॉंचा के नता हे, अइसन म दरस सेवा, मया-दुलार करना ही चाही.. फेर माता शबरी के धाम के नॉव म शिवरीनारायण के बोइर आदि उहाँ भेंट करे गिस तेने ह मोला थोरिक अनफभिक जनाइस.
   -अइसे काबर? 
   -मोला लागथे के हमर इहाँ के इतिहास लेखन म थोरिक अतिशयोक्ति के भाव चढ़गे हे. रामायण म उल्लेखित माता शबरी के ठउर तो कर्नाटक राज्य के पंपा नदिया के तीर म हे, जिहां राम ह भाई लक्ष्मण संग सीताहरण के बाद गे रिहिसे. हमर छत्तीसगढ़ म तो माता सीता ह इहाँ ले उहाँ तक राम अउ लक्ष्मण के संगे म रेहे हे. महाराष्ट्र राज्य के नासिक जिला के पंचवटी ले सीताहरण होए रिहिसे, त फेर तहीं बता सीताहरण के बाद राम लक्ष्मण ह वापस छत्तीसगढ़ आए रिहिसे ते आगू सुग्रीव के राज डहार गे रिहिसे? 
   -सही आय जी महूं ल कतकों अकन बात ह तर्क संगत नइ जनावय, अइसने वाल्मीकि आश्रम के बात घलो हे, हमन तुरतुरिया ल कहिथन, जबकि असल म ए ह उत्तर प्रदेश म हे.
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-संघर्षशील जनकवि अउ लेखक मन खातिर आम लोगन के मन म सम्मान के भाव तो होबेच करथे जी भैरा फेर चोरी चकारी कर के जिनगी जीयइया मन के मन म घलो उंकर मन खातिर श्रद्धा के भाव देखे म आ जाथे.
   -जनता के दुख-पीरा अउ अधिकार ल अपन लेखनी के माध्यम ले लोगन तक अमराने वाला मन बर तो सबके मन म सम्मान के भाव होबेच करही जी कोंदा ए तो स्वाभाविक बात आय. 
   -हव जी अभी एदे बीते 14 जुलाई के महाराष्ट्र के रायगढ़ म एक चोर ह मराठी के मयारुक कवि अउ लेखक रहे नारायण सुर्वे जी के घर ले चोरी कर के कुछ जिनिस मनला लेगे रिहिसे, दूसर दिन जब वोला गम मिलिस के वो तो कवि सुर्वे जी के घर खुसरगे रिहिसे त वो चोर ह वापस सबो जिनिस ल वोकर घर म मढ़ा के आगे अउ संग म एक पाती लिख के उहाँ छोड़ दे रिहिसे जेमा लिखाय रिहिसे के महान लेखक के घर म चोरी करे खातिर वो ह शर्मिंदा हे.
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-पौधारोपण के नॉव म फोटो खिंचवइया मन के भीड़ म अभी अइसनो देखे म आय हे जी भैरा के लोगन अपन रिश्ता नता मन के नॉव म पौधा लगा के वोकर सग रिश्तादार बरोबर ही देखभाल करत हें.
   -होना तो अइसने चाही, फेर जादा करके 'बो दे गहूं अउ चल दे कहूँ' कस उदिम चलत हे जी कोंदा.
   -फेर दुरुग जिला के पीसेगाँव म जतन ल सउंहे देख सकथस. 31 जुलाई 2011 ले इहाँ पौधारोपण ल अभियान के रूप म चलावत हें. गाँव के 55 बछर के कुमारी बाई ह अपन पति के नॉव म एक लीम के पौधा बोए हे, वो ह वो पौधा ल ही अपन पति मान के वोकर सेवा जतन करथे, वो ह रोज लीम पौधा के आरती उतारथे, वोला पोटार के मुंहाचाही करथे अउ सुख-दुख जम्मो ल बताथे.
   -वाह भई ए तो वाजिब म अद्भुत आय. 
   -हव जी अइसने अउ कतकों लोगन हें गाँव म जे मन अपन दाई, ददा या आने कुटुंब के नॉव म पौधा लगाए हें, अउ वोकर देखरेख ल वइसने करत हें. ए गाँव के मुक्ति धाम म बांस ल जलाए बर प्रतिबंध हे, वो मन बांस के उपयोग पौधा मन के घेरा बना के रक्षा करे बर करथें. अब तो गाँव म लोगन जनमदिन या बिहाव बछर जइसन बेरा म पौधा भेंट करे के परंपरा बना डारे हें.
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-छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन म वइसे तो हजारों लोगन के भागीदारी रहे जी भैरा.. फेर मोला लागथे के एकर खातिर जनजागरण करे म साहित्यकार मन के भूमिका सबले जादा पोठ रहे हे.
   -सही आय जी कोंदा.. राजनीति ले जुड़े लोगन तो चुनाव उनाव ल लकठियावत देखय त अलग छत्तीसगढ़ राज्य के गोठ कर देवत रिहिन हें, फेर साहित्यकार मन के तो बारोंमासी इहिच बुता राहय.. अउ ते अउ वो मन तो कवि सम्मेलन अउ साहित्य सम्मेलन के मंच म घलो छत्तीसगढ़ राज्य के गोठ करंय.
   -हव जी सही आय, फेर अभी एक अइसे मनखे हे संगी जे ह अपन नॉव के संग छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के भगीरथ लिखथे त मोला बड़ा ताज्जुब लागथे के हमन तो 28 जनवरी 1956 म राजनांदगाँव म डॉ. खूबचंद बघेल के चिंतन मनन ले होय 'छत्तीसगढ़ी महासभा' के बइठका अउ गठन ले ही राज्य आन्दोलन के शुरुआत मानथन, त ए नवा भगीरथ कहाँ ले जनम गे? 
   -जे मनखे के 28 जनवरी 1956 के जनम नइ होय रिहिस होही वो ह ए आन्दोलन/निर्माण के भगीरथ कइसे हो सकथे.. फेर हमर इहाँ तो अइसने नाखून कटा के शहीद के दर्जा पाए के उदिम करइया मन के संख्या जादा हावय ना!
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-सावन सोम्मारी के जोहार जी भैरा.. यहा कहाँ ले फूल-पान धर के आवत हस जी? 
   - जोहार जी कोंदा.. खोरवा मंडल के बारी के ताय.. बने घमघम ले फूले रिहिसे त आज महादेव म चढ़ा के पूजा करहूं गुन के टोर के ले आएंव जी.
   -अच्छा.. मतलब चोरा के लानत हस? भगवान के पूजा ल चोराय फूल-पान म करबे त वोकर जम्मो पुन्न परसाद अउ आशीर्वाद ल तैं पोगरी कहाँ ले पाबे संगी? 
   -कइसे गोठियाथस जी? 
   -बने गोठियाथौं जी.. अरे भई जेकर बारी के फूल-पान ल चोराय हस तेन ह आधा पुन्न परसाद ल नइ पाही जी? हाँ भई तैं कहूँ ए फूल-पान ल पइसा म बिसा के लाने रहिते या बारी वाले जगा ले अनुमति ले के टोरे रहितेस त भले पूजा के फल ल चुकता पातेस.
   -टार बुजा ल.. त अब मुंदरहा ले एकर-वोकर अंगना-बारी म अग्सी धर के जाथौं तेला छोड़े बर लागही.
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-गुरु पुन्नी परब के जोहार जी भैरा.
   -जोहार संगी कोंदा.
   -तहूं ह कान-उन फूंकवा डारे हावस नहीं जी? 
   -मैं ह पाठ-पिढ़वा वाले औं जी.. कोरी भर बछर होगे हे हरेली के दिन बइगा बबा जगा पाठ-पिढ़वा ले रेहेंव तब ले वोकरे बताए मुताबिक जप-तप चलत रहिथे.
   -महूं गुनत हौं काकरो जगा कान फूंकवा लेतेंव.. मंडल पारा के सियान ह काहत रिहिसे बिन कान फूंकवाय तप-जप साधना के पूरा फल नइ मिलय कहिके.
   -सिरतोन काहत रिहिसे सियान ह.. जम्मो लोगन ल विधिवत गुरु जरूर बनाना चाही, तभे हमर आध्यात्मिक साधना के फल ह पूरा मिलथे, साधना ह सफल होथे.. गुनिक मन बताथें के फल तो हमर अपन ईष्ट ही ह देथे, फेर गुरु के माध्यम ले देथे कहिथें.
   -अच्छा.. तब तो महूं ह गुरु बनाइच लेथौं जी, फेर का कोनो विशेष पदवी म बिराजे मनखे ल ही गुरु बनाए म ही साधना ह सिध परथे.
   -अइसन नइहे संगी.. जेन कोनो सिद्ध लोगन ल तैं जानत होबे, जेकर ऊपर तैं भरोसा करत होबे.. वोला गुरु बना ले.. जेन ह तोला सत् साधना के रद्दा धरा देवय.. उही ह तोर बर सतगुरु आय.
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-बरखा के दिन बादर आए के संग सॉंप चाबे ले लोगन के मरे के खबर घलो आए लगे हे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. जंगल-झाड़ी वाले क्षेत्र मन ले हर बछर अइसन खबर आवत रहिथे.
   -सही आय जी.. चिकित्सा विज्ञानी मन के संगे-संग कतकों समाजसेवी किसम के लोगन झाड़फूंक म बेरा पहवाए के बलदा अपन तीर के अस्पताल म जाए के अपील करत रहिथें तभो लोगन एकर अनदेखी करथें अउ मौत के मुंह म समा जाथें.
   -अभी एक झन जानकर ह काहत रिहिसे के ए बछर पानी कम गिरे के सेती उमस बाढ़गे हवय, तेकर सेती सॉंप मन गरमी ले हलाकान होके अपन बिला ले निकल के तीर-तखार म थोरिक जादच किंजरत-बुलत हावंय, एकरे सेती ए बछर सॉंप चाबे के घटना जादा देखे म आवत हे.
    -हव जी पेपर म रोज अइसन खबर पढ़े म आवत हे.
   -विशेषज्ञ मन के कहना हे के अइसन क्षेत्र के लोगन मनला मच्छरदानी लगा के ही सूतना चाही, आजकाल प्रशिक्षित सॉंप धरइया मन घलो सबो डहार रेहे लगे हें, उंकरो मन के सेवा लेवत रहना चाही, अइसन करे ले सॉंप के चाबे ले बहुत कुछ बचाव हो सकथे.
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-देख जी भैरा हम कांग्रेस भाजपा के झंझट म कभू नइ राहन, फेर जब इहाँ के अस्मिता अउ आस्था ले जुड़े बात आथे, त वोला बिन कहे राहन घलो नहीं.
   -हव जी कोंदा लोगन ल अइसनेच होना चाही, फेर का बात आय तेला बताबे तब तो जी? 
   -काली विधानसभा म नेता प्रतिपक्ष ह भॉंचा राम खातिर शिवरीनारायण के बोइर कहिके अयोध्या लेगे रिहिसे तेन कहाँ ले आइस कहिके सरकार जगा पूछे रिहिसे.. महूं ह ए बात ल जानना चाहथौं संगी के अइसन बरखा के दिन बादर म शिवरीनारायण म कब ले बोइर फरे ले धर लिस.. हमन तो कभू बाप-पुरखा म अइसन नइ सुने रेहेन? 
   -हो सकथे जी सरकार ह बोइर खोइला लेगे रिहिस होही, जइसे हमन ह खोइला बोइर ह ए चम्मास के सीजन म बने कोंवर-कोंवर भाथे कहिके खाथन नहीं, तइसने भगवान घलो खाही कहिके! 
   -त एला फोरिया के गोठियाना चाही ना.. खोइला बोइर लेगे रेहेन कहिके. वइसने मोला ए मौसम म शिवरीनारायण के सीताफल लेगे के बात ह घलो टोटा म उतरे असन नइ जनावत हे संगी!
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-अभी चारों मुड़ा के सरकार मन फोकट म चॉंउर, फोकट म बिजली अउ फोकटेच म फलाना-ढेकाना के चरित्तर म बूड़े हें जी भैरा.
    -हव जी कोंदा.. फोकट म झोंक-झोंक के लोगन कोढ़िया जॉंगरचोट्टा बनत जावत हें, फेर मोला ए ह निक नइ जनावय संगी.. अइसन करे ले कोनो भी देश के गरीबी ल नइ सिरवाय जाय सकय. 
   -ठउका कहे संगी.. मैं कतकों झन फोकट के चॉंउर झोकइया मनला वो चॉंउर ल बेच के जुआ-चित्ती अउ मंद-मउहा म बूड़े देखे हौं.
   -महूं ह अइसन मनला देखे हौं संगी.. श्रम शक्ति के जब तक रचनात्मक अउ न्यायसंगत उपयोग नइ होही तब तक गरीबी अउ भूखमरी दुरिहाय के बात ह बिरथा हे.
    -हव जी दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति अउ रंगभेद आन्दोलन के प्रमुख रहे नेल्सन मंडेला ह एक पइत केहे रिहिसे- गरीबी ल न्याय दे के ही सिरवाए जा सकथे, दान दे के नहीं.
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-पेड़ पौधा मन हमर जिनगी के संगे-संग हमर संस्कृति के घलो महत्वपूर्ण अंग आय जी भैरा.
   -हव आय न जी कोंदा.. तभे तो हमन आने आने पेड़ म आने आने देवी या देवता के बासा या कहिन निवास घलो मानथन अउ उंकर मान-सम्मान घलो करथन. 
   -हव जी.. अब डूमर के पेड़ ल ही देख लेवौ एकर बर-बिहाव म कतका महात्तम हे.. मड़वा छाए ले लेके मंगरोहन बनाय अउ दुल्हा दुल्हीन के तेल-हरदी चघे के बेरा बइठे बर बिन खीला के बनाय पिड़हा म घलो एकरेच उपयोग होथे.
   -हव जी डूमर के डारा-पाना, लकड़ी सब के उपयोग बिहाव म होथे.
   -अइसे लोक मान्यता हे जी संगी के डूमर के पेड़ म दुल्हा देव अउ दुल्हीन देवी के बासा होथे, तेकरे सेती बर-बिहाव म इंकर आशीष छाहित राहय कहिके डूमर के उपयोग करे जाथे.
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-हरेली जोहार जी भैरा.
   -जोहार संगी कोंदा.. ए बछर पानी के पछुवाए के सेती बियासी रोपाई सबो च पछुवागे हे जी नइते आने बखत सबो किसानी के बुता उरक जावय त बने हरहिंछा जम्मो नॉंगर-बक्खर मनला धो-पोंछ के पूजा पैलगी करन त निक जनावय.
   -हव जी सिरतोन कहे.. बइगा के नेवरिया चेला बनइया मन के उछाह घलो देखते बनय. अपन-अपन ले पाठ-पिढ़वा ले बर सब उत्साहित रहंय.
   -मैं तो मंतर-जंतर के फेर म कभू नइ परेंव, तभो अधरतिहा बेरा ए मन बछर भर म एक पइत अपन जम्मो मंत्र के पाठ करंय, चेला-गुरु बनावंय तेमा संघर जावत रेहेंव.
   -एक-दू पइत महूं ह संघरे हावौं संगी.. बुढ़वा बइगा ह बतावय- आजे के दिन भगवान‌ भोलेनाथ ह अपन तिरछुल म बंधाय सिंघिन ल फूंक के मंत्र शक्ति ल परगट करे रिहिसे, तेकरे सेती इहू मन आजे के दिन अपन मंत्र ल बछर भर म फेर जगाथें.. वोकर पुनर्पाठ करथें अउ संग म नेवरिया सीखइया मनला चेला बना के पाठ-पिढ़वा देथें.
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-अभी बुंदेलखंड के हरदौल अखाड़ा के गुरु रामचंद्र पाठक जी के सरग सिधारे म उंकर चेला मन अपन गुरु के शव के आगू म तलवार, फरसा, चक्र जइसन अखाड़ा ले संबंधित जिनिस मन के प्रदर्शन कर के श्रद्धांजलि अर्पित करीन हें जी भैरा.
   -अपन गुरु खातिर श्रद्धांजलि अर्पित करे के सबके अपन परंपरा अउ आस्था होथे जी कोंदा.. अब हमरे इहाँ देख लेना लोककवि अउ परमानंद भजन मंडली के गुरु रहे बद्रीविशाल यदु परमानंद जी के शवयात्रा के बेरा म वोकर भजन मंडली के जम्मो चेला मन परमानंद जी के ही लिखे हुए भजन मनला गावत बजावत घर ले रामकुंड के आमा तरिया तक लेग के उनला श्रद्धांजलि दिए रिहिन हें ना.
   -हव जी.. अइसने महूं ह शब्दभेदी बाण चलइया अउ करमा सम्राट के उपाधि ले सम्मानित कोदूराम वर्मा जी के अंतिम यात्रा म घलो देखे रेहे हौं.. उंकर गाँव भिभौरी म करमा नृत्य मंडली के चेला मन 'हाय रे हाय रे सुवा उड़ागे ना, सोन के पिंजरा खाली होगे सुवा उड़ागे ना.. ' करमा गीत गावत नाचत उनला श्रद्धांजलि दिए रिहिन हें.

Friday 19 July 2024

सवनाही जोहार...

सवनाही जोहार.. 
     चौमसहा बरखा के आए के संग एकर परघनी करे अउ संग म अवइया रोग-राई आदि मन ले बॉंचे के जोखा होय लगथे. असाढ़ महीना के अमावस के जिहां जुड़वास या कहिन माता पहुंचनी मनाए जाथे, ठउका अइसने असाढ़ महीना के आखिरी इतवार के 'सवनाही परब' मनाए जाथे.
   सवनाही के शाब्दिक अर्थ होथे- सावन आही.. अब सावन आही त वोकर जोखा सरेखा घलो तो जरूरी हे. सवनाही ल हमर गाँव म असाढ़ के आखिरी इतवार के ही मनाए जाथे, कोनो कोनो गाँव म आने दिन घलो मना लेथें. एकर मनाए के परंपरा म घलो आने आने गाँव म थोक-बहुत अंतर देखे म आथे. जइसे कोनो गाँव के सरहद म करिया कुकरी के मुड़ म सेंदुर बुक के भूत-प्रेत रकसा आदि के भेंट खातिर ढील दिए जाथे, ए चलन ल हमन अपन गाँव म नइ देखे रेहेन. हमर गाँव म अइसन‌ तंत्र मंत्र रोग-राई वाले पूजा मनला घलो हमन हूम-धूप नरियर के माध्यम ले सात्विक विधि ले ही होवत देखे हावन.
   सवनाही परब के दिन बिहनिया ले ही सब जोखा सरेखा शुरू हो जाथे. बइगा ह मुंदरहा ले ही गाँव के अउ आने सियान मन संग मिल के ठाकुर देव, मेड़ो देव के संग म आने जम्मो ग्राम्य देवता अउ खेत-खार म बिराजित देवता मन के पूजा सुमरनी कर उनला मनाए के उदिम म लग जाथे, त दाई-माई मन घर के बाहरी भिथिया मन म गोबर के आदिम मनखे के चित्र या फेर बेंदरा आदि के छापा बनाथें. 
   हमर ग्रामीण संस्कृति म हनुमान जी ल लोक रक्षक देवता के रूप म प्रतिष्ठा प्राप्त हे, एकरे सेती सवनाही के बेरा म वोकरे प्रतीक स्वरूप बेंदरा के छापा भिथिया म बनाए जाथे. जइसे माता के रखवार के रूप म हनुमान जी ल लाली लंगुरवा कहि के जस गायन आदि म सुमरे जाथे ठउका वइसने सवनाही म घर के भिथिया म उंकर प्रतीक स्वरूप बेंदरा के रूप म अंकित करे जाथे.
   सवनाही म भिथिया म गोबर ले जेन छापा बनाए जाथे एकर वैज्ञानिक महत्व घलो हे. सावन भादो के गहिर बरखा म कतकों किसम के रोग-राई वाले जीवाणु मन जनमथें, जे मन घर म खुसरे के प्रयास करथे, अइसन बेरा म वो मन गोबर के बने छापा डहार आकर्षित होथे अउ उही म चटक के मर जाथे.
    ए दिन घर के सियान ह गरुवा मन के कोठा म मिंयार म बंधाय नरियर ल हेर के नवा नरियर ल नवा कपड़ा म लपेट के बॉंधथे. मालमत्ता मन के सुरक्षा खातिर कोठा म बंधाय नरियर ल बछर म एक बेर बलदे जाथे.
   सवनाही परब जेन दिन मनाए जाथे, तेकर पहिलीच गाँव म कोतवाल ह हॉंका पार दे रहिथे के फलाना दिन गाँव म सवनाही मनाए जाही, तेकर सेती कोनोच मनखे न तो गाँव ले बाहिर जावय अउ न कोनो किसम के बुता-काम करय. कहे जाय त ए दिन अनिवार्य रूप ले छुट्टी घोषित होथे. कहूँ कोनो मनखे ए आदेश के अनदेखा करही, त वोला डांड़-बोड़ी के भागीदार बनना परथे.
   इतवार के गरुवा ढीलाते पहाटिया ह गाँव के सबो मवेशी मनला खैरखा डांड म सकेल के ठोक देथे, तेकर पाछू मवेशी मन के गोंसइया मन परसा पान म कोड़हा के बने अंगाकर रोटी के संग जल धर के आथे अउ राउत संग बइगा ल देथे, जेला धर के बइगा अउ राउत मवेशी मन के संग गाँव के उत्ती मुड़ा गाँव के सियार म जाथे अउ सवनाही देवी के पूजा करथे. पूजा करे के पाछू वो कोड़हा के अंगाकर रोटी ल सवनाही देवी ल समर्पित करे जाथे, बॉंच जथे तेन अंगाकर ल गरुवा मनला खवा दिए जाथे. बइगा लेगे जल ल अभिमंत्रित कर के किसान मनला देथे, जेला किसान मन अपन अपन खेत म जाके छींच देथें. मान्यता हे के अभिमंत्रित जल ल छींचे म खेत म रोग-राई नइ संचरय.
   पूजा खातिर बइगा ह जेन पद्धति के माध्यम ले सिद्धी पाए रहिथे उही माध्यम के प्रयोग करथे. हमर गाँव म दू अलग अलग बइगा रिहिन हें, एक ल हमन डोंगहार बबा काहन, जेन केंवट समाज के रिहिसे, त दूसर ह ब्राह्मण समाज के रिहिसे, जेला मदन महराज काहन. एकरे सेती दूनों के तांत्रिक क्रिया म थोकिन अंतर देखे म आवय. फेर एक बात संहराय के लाइक रिहिसे के ए दूनों बइगा मन म कोनो बात ल लेके मन मुटाव होवत हमन कभू नइ देखेन, भलुक दूनों एक दूसर के सम्मान अउ सहयोग करयं अउ अलग अलग बेरा म अलग अलग नेंग म संघरंय.
   वइसे तो मोर पढ़ई लिखई ह जादा कर के शहर म होय हे, तभो अइसन परब या प्रसंग आवय त मैं गाँव पहुँच जावत रेहेंव अउ बइगा के अगुवाई म होवत अइसन प्रसंग म सियान मन संग संघर जावत रेहेंव. मोला सुरता हे हमन पूजा खातिर रखे थारी, लोटा, गिलास अउ छेना म माढ़े आगी के अंगरा मनला ही धरे के काम करन. सवनाही के परसाद ल बाहिर म ही खाए के नियम हे. एला धर के घर नइ लेगे जाय. इही ह सियान मन संग रात भर किंजरे के हमर मन के असली लालच राहय. 
-सुशील भोले
संजय नगर, रायपुर
मो/व्हा. 9826992811

Tuesday 9 July 2024

कोंदा भैरा के गोठ-21

कोंदा भैरा के गोठ-21

-अब के पढ़इया लइका मनला छत्तीसगढ़ी भाखा अउ संस्कृति के संग छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ साहित्यकार मन के जानबा रखना जरूरी होगे हे जी भैरा.
   -हव जी कोंदा.. छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग आदि संस्थान मन के परीक्षा म छत्तीसगढ़ी भाषा के अंतर्गत एकर मन ले जुड़े प्रश्न पूछे जाथे. अभी 24 जून ले शुरू होय पीएससी के परीक्षा म ए बछर मयारुक असन प्रश्न पूछे हें.
   -अइसे.. ए बछर का-का पूछे हे? 
   -वइसे तो अबड़ अकन प्रश्न पूछे गे हवय, दू-चार मन ल ओरियावत हौं-
'कल के बासी आज के भात, अपन घर म का के लाज' ए लोकोक्ति के आशय पूछे रिहिसे.
'खुसरा चिरई के बिहाव' काकर रचना आय? 
'छत्तीसगढ़ी भाषा के उद्विकास' के रचनाकार के नाम? 
'मयारु माटी' पत्रिका के संपादक के नाम का हे? 
'छत्तीसगढ़ी गीत के राजा' कोन गीत ल माने जाथे? 
'छत्तीसगढ़ी बोली का व्याकरण' काकर रचना आय?
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-भाखा-संस्कृति ल हमर चिन्हारी के दूनों अॉंखी बताथें जी भैरा.
   -सिरतो आय जी कोंदा.. इही दूनों के माध्यम ले ही कोनो भी देश, राज या क्षेत्र के चिन्हारी होथे. हमर छत्तीसगढ़ ल अलग राज के जेन दर्जा मिले हे, तेकरो मापदंड हमर भाखा अउ संस्कृति रेहे हे.
    -तोर कहना वाजिब आय संगी, फेर हमन ल भाखा अउ संस्कृति के नॉव म भटकाय अउ भरमाय के खेल घलो अबड़ होय हे.
   -होय हे का.. आजो होवत हे.. अब देख ले हमर राज के माई भाखा छत्तीसगढ़ी आय, फेर एला भरम जाल म अरझा के हिंदी भाषी राज घोषित कर दिए गे हवय, ठउका अइसने आने हिंदी भाषी राज मन के संस्कृति ल हमर मन ऊपर बरपेली थोपे जावत हे.
   -सही आय संगी.. एकर बर लोगन के अॉंखी म राष्ट्रीयता नॉव के जेन अॅंधरौटी अॉंजे गे हे तेला पोंछे बर लागही, तभे लोगन जान पाहीं के छत्तीसगढ़ के तो स्वतंत्र रूप ले भाखा अउ संस्कृति हे. 
   -सही आय जी, तभे तो मैं गोहराथौं-
जब तक हमर भाखा-संस्कृति हे तभे तक आस हे, 
बिन भाखा-संस्कृति के छत्तीसगढ़िया के विनाश हे।
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-लोगन के भीतर ले मानवता धीरे-धीरे नंदावत हे जी भैरा.. अब कभू अपराध होथे त वोला रोके ल छोड़ के देखाए म जादा मगन जनाथें.
   -सही आय संगी कोंदा.. अब कतकों जगा अइसन नजारा देखे बर मिल जाथे, जिहां लोगन सामान्य मानवीय व्यवहार के घलो दर्शन नइ करंय. 
   -हव जी.. अब काली पेंड्रा गौरेला के घटना ल ही देख लेना.. 21 बछर के रंजना नॉव के कॉलेज छात्रा ल एक अतलंगी टूरा ह चाकू मार के हत्या कर दिस अउ बिन काकरो रोक-छेंक के वो जगा ले मोटरसाइकिल म बइठ के भाग गे घलो.
   -सही आय संगी.. महूं ह ए घटना के सीसीटीवी फुटेज ल समाचार म देखत रेहेंव.. वो नोनी अउ वोकर भाई अपराधी ले बचाय खातिर कतेक गोहरावत रिहिन हें, फेर एको मनखे तो उनला बचाय के उदिम करतीन! 
   -हव जी.. अतेक भीड़ भाड़ वाले जगा म दिन दहाड़े होवत घटना ल रोके के चेत कोनोच नइ करीन.. हाँ भई.. लोगन अपन-अपन मोबाइल ल हेर के वोकर विडीयो जरूर बनाइन.
   -बहुत दुर्भाग्य के बात आय संगी.. लोगन के अइसन अमानवीय चरित्तर कतकों जगा अब देखे म आवत हे, उन अपराध ल रोके ल छोड़ के वो घटना के विडीयो बनाय म मगन हो जावत हें.
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-एक पढ़े लिखे उच्च शिक्षित माईलोगिन के कहना हे जी भैरा के वो मन जब विधवा हो जाथें तभो पहिली च असन कपड़ा-लत्ता पहिनना चाही.. 
   -अच्छा जी कोंदा.. माने रंग-बिरंगा लुगरा-पोलखा? 
   -हव.. वोकर कहना हे के दशगात्र के दिन घलो वो विधवा होवइया माईलोगिन ल चकाचक रहना चाही.. वोकर कहना हे के जब हमन आज कतकों अकन जुन्ना परंपरा ल छोड़त नवा-नवा परंपरा अउ विज्ञान के आविष्कार मनला अपनावत हावन त ए मरिया-हरिया के भेद ल घलो काबर नइ मिटाना चाही? 
   -वोकर तर्क ह बने तो जनावत हावय संगी, फेर उही च पूछे रहिते के जब नोनी मन कुंवारी रहिथें, तेन बखत के पहिनावा अउ सिंगार म ही बिहाव के बाद घलो काबर नइ राहय? आखिर इहू म बदलाव करे के का जरूरत हे? आदमी जात मन के पहिनावा म अउ सिंगार म तो जादा बदलाव नइ देखे जाय, फेर माईलोगिन मन म अइसन काबर आथे? का इहू ह फोकटइहा नोहय?
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-अब के पढ़इया लइका मनला जउंहरहा बस्ता लाद के रेंगत देखबे त पहिली नेवरिया बछवा मन के घेंच म नॉंगर जोते के पहिली लदका लादय नहीं, तेकरे सुरता आथे जी भैरा.
   -सिरतोन आय जी कोंदा.. पढ़ई हमू मन करे हन भई फेर अइसन जउंहरहा बस्ता कभू लादे बर नइ लागे रिहिसे, हमन तो बस गिनती के चार ठन कापी किताब मनला झोला म धरन अउ मेंछरावत फुदक्का मारत पल्ला दौंड़त असन स्कूल चल देवत राहन.
   -हव जी.. विशेषज्ञ मन के कहना हे के भारी भरकम बस्ता लाद के कोंघरे-कोंघरे रेंगे ले लइका मन के रीढ़ के हांड़ा टेड़गा हो जाथे, एकर ले शारीरिक अउ मानसिक विकास घलो ढेरियाय असन हो जाथे.
   -होबेच करही संगी.. भारत सरकार के गाइडलाइन घलो अइसने कहिथे, फेर मोला ए सब खातिर शिक्षा विभाग के अधिकारी मन संग पुस्तक प्रकाशक मन के मेल-जोल ह जादा कारण जनाथे.
   -हो सकथे भई.. फेर एमा प्रायवेट स्कूल मन म तो अउ अति दिखथे.. कमीशन के चक्कर म कतकों किताब कापी मन बरपेली पाठ्यक्रम म संघर जाथे तइसे जनाथे.
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-बड़ दिन म भारतीय क्रिकेट टीम ह टी-20 विश्व कप ल जीते हे जी भैरा अउ इही जीत के संग कप्तान रोहित अउ विराट ह संन्यास के घोषणा घलो कर डारे हे.
   -जीत ह तो खुशी के बात आय जी कोंदा.. फेर अतेक कम उमर म रोहित अउ विराट के संन्यास ले के बात ह मोला अलकर जनावत हे.
   -अरे वाह.. अलकर काबर संगी.. एक उमर के बाद तो खेलकूद म कमी देखेच म आथे.. ए तो बने होगे के ए मन विश्व कप जीते बाद संन्यास खातिर ठउका बेरा ल चुने हे.
   -अच्छा त ए मन खेल ले संन्यास ले हवयं जी.. मैं ह हमन‌ जइसे गृहस्थ जीवन ल छोड़ के वानप्रस्थ के रद्दा धर लेथन तइसन संन्यास समझत रेहेंव.
   -हत तो बइहा कहीं के.. अरे भई ए मन अब सिरिफ टी-20 क्रिकेट म हमर देश के टीम भर ले नइ खेलय बाकी मनला खेलत रइहीं, जइसे के आईपीएल, टेस्ट अउ वनडे क्रिकेट होथे तइसन मनला.
   -ओहो.. मैं आने समझ परे रेहेंव संगी.. मोला लागथे के एकर बर संन्यास के बलदा अउ कुछू आने शब्द के प्रयोग करना चाही, काबर ते संन्यास के भाव तो गृहस्थ जीवन ल चुकता छोड़ के वैराग्य के रद्दा धर लेना होथे, फेर ए मन अइसन कहाँ करथें?
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-अब कोनो परब उत्सव म अपन संगी मनला फूल के गुलदस्ता दे के बलदा मौसमी फल अउ साग-भाजी ल बॉंस के नान्हे टोपली म सुग्घर असन सजा के उपहार के रूप म दे के चलन बाढ़त हे जी भैरा.
   -अच्छा.. जइसे काली जुवर तोर जनमदिन के बेरा म लइका मन टोपली ल सुग्घर सजा के दिए रिहिन हें तइसने.
   -हव जी हमर रायपुर के समाजसेवी संस्था ह ए नवा अउ सुग्घर उदिम ल शुरू करे हे.. उंकर कहना हे के फूल के गुलदस्ता ह झोंकत अउ फोटू खींचत भर ले बने जनाथे, फेर थोरकेच बेर म वो ह अनुपयोगी हो जाथे, जबकि मौसमी फल अउ साग-भाजी ह हर दृष्टि ले उपयोगी बने रहिथे, एकर ले पइसा के फिजूल खर्ची होय अस घलो नइ जनावय.
   -उंकर कहना वाजिब जनावत हे संगी.. एकर ले फल अउ साग-भाजी उत्पादक किसान मन के संग बॉंस के टोपली बना के अपन घर परिवार के जोखा करइया मन के रोजी रोजगार ह घलो बने चल जाही.
   -सही आय संगी.. अब महूं ह अइसन बेरा म अपन संगी संगवारी मनला फूल के गुलदस्ता दे के बलदा मौसमी फल ल सुग्घर अस टोपली म सजा के दे के टकर बनाहूं.
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-शिक्षा के अंजोर बगरे के बाद घलो लोगन अभी ले बेटा अउ बेटी म भेद करत अलहन कर डारथें जी भैरा.
   -कइसे का होगे जी कोंदा? 
   -एदे अभी मस्तुरी क्षेत्र के  गाँव किरारी ले खबर मिले हे, उहाँ के हसीन गोयल नॉव के माईलोगिन ह अपन चौबीस दिन के बेटी ल कुआँ म फेंक के मार डरिस.. वोकर कहना हे के सरलग तीन झन बेटी के होय ले घर परिवार म सम्मान नइ मिल पाही गुन के वो हाले म जनमे बेटी ल मार डरीस.. वोला असल म बेटा के चाह रिहिसे.
   -तीन झन बेटी होगे रिहिसे त का होगे.. भई हमरो तो तीन झन बेटी हे, हमूं कहूँ वोकरे असन गुन के अलहन कर परे रहितेन त आज तो मरे बिहान हो जाए रहितीस.
   -हव जी सही आय.. कतकों लोगन हें जेकर मन के तीन झन अउ वोकरो ले उपराहा बेटी हे, अउ देखत हावन के बेटी वाले मन आज के बेरा म जादा सुखी हें.
   -मैं ह खुद एकर बड़का उदाहरण हौं.. आज मोर देंह-पॉंव के हालत ल तो देखत हस.. न कहूँ आ सकौं न जा सकौं.. तभो मोर नोनी मन ही मोर सरी जोखा करत हें.. सिरतोन काहत हौं कहूँ बेटा के चक्कर म परे रहितेंव त कोन जनी वो मन अतका करतीन ते नहीं ते?
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-पश्चिम के अंधानुकरण करत एक डहार जिहां हमर इहाँ के पीढ़ी ह संयुक्त परिवार के बंधना टोर के व्यक्तिवाद के रद्दा धरत हे जी भैरा उहें स्वीडन ह अपन इहाँ दाई-बबा मनला नाती-नतनीन के देखभाल खातिर तीन महीना के सवैतनिक छुट्टी दे के नियम पास करे हे, तेमा लइका मनला महतारी-बाप के संग दाई-बबा के घलो मया-दुलार अउ संगत मिल सकय. 
   -ए तो बहुत बढ़िया बात आय जी कोंदा.. हमन संयुक्त परिवार के महत्व ल तो देखेच हावन, आज भले नवा पीढ़ी ह एकर ले छटके असन करत हे.
   -हव जी.. संयुक्त परिवार म रेहे ले लइका मनला नान्हे उमर ले ही अपन परंपरा अउ गौरव के संग इतिहास अउ घर परिवार सबके समझ आवत जाथे, उहें एकलमुंडा होके आत्मकेंद्रित होवत पश्चिम के बिखरत अउ परेशान समाज ल तो घलो देखतेच हावन.
   -सही आय.. कोनो 'डे केयर सेंटर' म पलत-बाढ़त लइका ल वो मया-दुलार अउ देखभाल नइ मिल सकय, जेन दाई-बबा के कोरा अउ दुलार म बाढ़त लइका ल  मिल पाथे.
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-ले देख ले जी भैरा.. प्रसिद्ध समाजसेवी अउ अभी हाले म राज्यसभा के सांसद बने सुधा मूर्ति जी ह पाछू तीस बछर म एको ठन लुगरा नइ बिसाय हे.. उन बताइन के उंकर बहिनी मन या नता-रिश्तादार मन जे लुगरा ल गिफ्ट के रूप म दे देथें, उहिच ल वो ह पहिरथे.
   -वाह भई.. जतका बड़का मनखे ततके बड़का सादगी के बात आय जी कोंदा ए तो.. 
   -हव भई.. अउ हमर इहाँ के सियानीन ल तिहार-बार संग वोकर जनम दिन म कहूँ नवा लुगरा बिसा के नइ देबे त वो तोला बखान-सराप के धुर्रा छंड़ा दिही.
   -सिरतोन आय जी हमरो इहाँ के इही हाल हे.
   -सुधा मूर्ति जी बताइन के उनला महिला समूह वाली मन हाथ ले कसीदा करे वाला दू ठन लुगरा दिए हें, तेन मन तो सबले जादा निक जनाथे.
   -हमर इहाँ उल्टा हे संगी.. गिफ्ट म मिले लुगरा मन संदूक-झॉंपी मन के शोभा बढ़ाय म मगन रहिथें.
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-जैन संत श्री विरागमुनि जी के कहना हे जी भैरा के हमन ला अपन लइका मनला नान्हे उमर ले ही प्रवचन अउ धर्म स्थल म लाना चाही, नइते उंकर अउ हमर बीच के जेनरेशन गैप ह अतेक जादा बाढ़ जाही, ते अवइया बेरा म एला भरना असंभव हो जाही.
   -मुनि श्री के कहना ह महूं ल सोला आना जनाथे जी कोंदा.. हमन देखत तो हावन मोबाइल म उलझे नवा पीढ़ी ह अपन संस्कृति संस्कार अउ गौरव ले कतेक दुरिहावत जावत हे.. अउ ए सब बर कोनो न कोनो मेर हमीं मन दोषी हावन, जेन उनला अपन जड़ मूल संग जोड़े ल छोड़ के मोबाइल के माध्यम ले कार्टून अउ गेम म उलझाय परत हावन.. जेमा वोमन संग म एती-तेती ल घलो झॉंक डारथें.
   -हव जी.. रायपुर के विवेकानंद नगर म प्रवचन करत मुनि श्री कहिन के अब प्रवचन ठउर म सिरिफ 50-55 बछर के लोगन दिखथें, ए दृश्य ल बलदना चाही. वो मन चिंता जाहिर करत कहिन के आज के बेरा म कोनोच रिश्ता ह पवित्र नइ रहिगे हे, ए सब बिखराव ह अध्यात्म संग जुड़े ले ही सुधर सकथे.
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-जब कभू कोनो मनखे नवा रद्दा गढ़े के कोशिश करथे, त लोगन वोला जकला-बइहा काहत भरमाए अउ भटकाए के उदिम तो करबे करथे जी भैरा.
    -हव ए बात तो सिरतोन आय जी कोंदा.. पहिली बात तो ए हे के लोगन वोकर कारज के उद्देश्य ल नइ समझ पावय तभो अंते-तंते गोठियाथें, त कभू कोनो मनखे वोकर ए कारज ल इरखा भाव ले देखत घलो वोकर रद्दा म अटघा डारे के उदिम करथे.
   -सही आय जी.. अइसन मनखे के रद्दा म अटघा डरइया मन जादा जनाथें, फेर एक बात तो हे संगी.. नदिया के पानी कस सरलग बोहावत रहिबे, त तोर रद्दा म अइसन जतका अटघा डरइया काड़ी-कचरा बरोबर लोगन आथें, सब अपने अपन तिरिया जाथें.
   -अच्छा अइसे? 
   -हहो.. माउंटेन मेन के नॉव ले प्रसिद्ध दशरथ मॉंझी के नॉव ल सुने हावस नहीं.. वोकर जिनगी अउ ठोस इरादा ले करे बुता ह ए बात के सउंहे उदाहरण आय.
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-छत्तीसगढ़ म पत्रकारिता के पुरोधा पं. स्वराज प्रसाद त्रिवेदी जी के जयंती कार्यक्रम के अध्यक्षता करत रायपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष प्रफुल्ल ठाकुर ह अभिव्यक्ति के आजादी ल आजो खतरा हे काहत रिहिसे जी भैरा.. उन काहत रिहिन हें के सत्ता आजो सवाल पूछई ल पसंद नइ करय. 
   -ए बात तो सही आय जी कोंदा.. पत्रकार मन जइसन साहित्यकार मन घलो अभिव्यक्ति के आजादी खातिर जूझत अउ खटत हें.. पत्रकार मनला तो सिरिफ सत्ता म बइठे लोगन अॉंखी तरेरे कस करथें, साहित्यकार मनला तो सत्ताधारी दल के चापलूस अउ उंकर आगू पाछू पूछी हलइया मन घलो भूंके-चाबे कस करत रहिथें.
   -ए बात ल महूं आकब करे हौं जी संगी.. नेता मनले जादा वोकर पोसवा मन अभिव्यक्ति के आजादी के रद्दा म जादा अटघा डारथें.. साहित्यकार मन के बात ल लबारी अउ मनगढंत होय के भरम-जाल म उलझाए के उदिम करथें... कभू-कभू तो उनला शारीरिक, मानसिक अउ आर्थिक रूप ले नुकसान पहुंचाए के घेक्खरई अउ निर्लज्जता घलो कर डारथें.
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-ए डिजिटल युग ह हमर मन के पढ़ई-लिखई के आदत ल छोड़ा के विडीयो देखई डहार लेगत हावय जी भैरा.
   -सिरतोन कहे जी कोंदा.. अब तो हमन चिट्ठी पाती लिखे बर घलो भुलावत जावत हावन.. एकर बलदा म आॅडियो या विडीयो मैसेज भेज डारथन या सउंहे गोठ-बात कर लेथन.
   -सही कहे संगी.. नवा पीढ़ी तो एमा एकदमेच रंगगे हावय, फेर एकर ले हमर मन के कल्पना अउ सृजनात्मक शक्ति के बढ़वार म सरलग कमी आवत हे.
   -अच्छा.. अइसे? 
   -हव.. अभी एक शोध रिपोर्ट म बताए गे हवय के विडीयो देखे के बलदा किताब ल पढ़ के कोनो विषय के जानकारी सकेले ले हमर कल्पना शक्ति परिष्कृत होथे, जेकर ले सृजनात्मकता बाढ़थे घलो.
   -ठउका बताए संगी.. अब महूं ह जादा विडीयो-फिडीयो ल देखई छोड़ के किताब पढ़े म जादा चेत करहूं.. वइसे मोर एक आदत बढ़िया हावय के मैं अखबार बहुत पढ़थौं.. टीवी म समाचार घलो देखथौं, फेर अखबार ल जादा महत्व देथौं.
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-अभी हमर इहाँ ए देखे म आवत हे जी भैरा के कोनो मनखे कहूँ धरम परिवर्तन कर लेथे त वोकर गाँव वाले मन वो मनखे के मरे के बाद वोकर मृत देंह ल अपन गाँव म अंतिम संस्कार करे ले मना करथें.
   -हव जी कोंदा अभी बस्तर क्षेत्र म अइसन घटना बनेच देखे म आवत हे, उहाँ धर्म परिवर्तित लोगन के मृत शरीर के वोकर अपन जनमभूमि म ही अंतिम संस्कार करे ले मना करे जावत हे, कोनो कोनो गाँव म तो अइसन घटना के चलत जबर मार-काट घलो देखे म आवत हे.
   -हव जी.. अइसन घटना के संबंध म अभी बिलासपुर हाईकोर्ट ह अपन निर्णय दिए हे के वो मरे मनखे ल अपन जन्मभूमि वाले गाँव म अंतिम संस्कार करे के संवैधानिक अधिकार होथे. हमर देश के संविधान के अनुच्छेद 21 म ए बात के स्पष्ट उल्लेख हे के मनखे ल सम्मान के साथ जीए के जेन अधिकार हे, वो ह वोकर मरे के बाद भी लागू होथे, तेकर सेती वोकर मृत शरीर के अंतिम संस्कार वोकर गाँव म करे ले कोनो नइ रोक सकय.
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-प्राथमिक शिक्षा ल इहाँ के महतारी भाखा म दे के तुंहर जेन माँग रिहिसे तेन पूरा होगे जी भैरा.. अभी राज्य सरकार ह अपन केबिनेट के बइठका म एला मंजूरी दिस हे.
   -राज्य सरकार के ए निर्णय ल सुन के गजब निक लागिस हे जी कोंदा.. हमन तो जब ले छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन म संघरे रेहेन, तभेच ले छत्तीसगढ़ी ल संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल कर के इहाँ के महतारी भाखा म ही शिक्षा दिए अउ इहीच भाखा म राजकाज चलाए के माॅंग करत रेहेन.. चलव अब सरकार ह प्राथमिक शिक्षा ल महतारी भाखा म दिए के निर्णय लिए हे, एकर स्वागत हे, फेर अभी घलो हमर मन के माॅंग ह चुकता पूरा नइ होए हे संगी.
   -अच्छा.. अइसे? 
   -हव.. जब तक छत्तीसगढ़ी आठवीं अनुसूची म नइ संघरही.. इहाँ के संपूर्ण शिक्षा के माध्यम छत्तीसगढ़ी नइ बनही... जब तक राजकाज के भाखा नइ बनही तब तक हमर माँग ह अधूरच जनाही.