सोमवार, 14 जून 2010
आस्था
जीवन जीने की कला हमारे स्वयं पर निर्भर करता है। हम चाहे जिंदगी को जिस रूप में जिए लेकिन जीते तो हैं । हमने महसूस किया है कि हमारे जीवन में एक मुख्य स्थान आस्था का है। जो लोग नास्तिक हैं वो भी किसी न किसी चीज पर विश्वास अवश्य रखते हैं, फिर आस्थ्वन की तो बात ही अलग है। हम अपने सारे दुःख एक आस्था के बल पर ही सह लेते हैं और अछे समय का इंतजार करते हैं । हमारे भीतर के बल को बढ़ाने का काम तथा विशेष परिस्थितियों से लड़ने की हिम्मत हम पाते हैं। यह आस्था कई रूपों में हमारे समछ आती है लेकिन हर रूप में हमें बल प्रदान करती है पर इसके स्वस्थ स्वरुप को अपनाना ही हमारे लिए उचित है.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)