अगली पीड़ी के पहले बच्चे का, पहला दिन
याद आ गया फ़ौरन जब उसकी माँ गई थी स्कूल
ख़ुशी थी रोमांच था और बच्ची भी थी बहुत कूल
पूरे बक्त ह्रदय में रही हूक दिल में थे डेरों शूल
काश उस नन्ही जान को समेट लेतीं आंचल में
ना भेजती स्कूल
पर कहाँ था यह संभव बच्ची को तो जाना ही था स्कूल
आज गई है उसकी भी बेटी- वो भी है वैसी ही कूल
कहानी फिर बहीं से शुरू होती है पर बदल गया है स्कूल
सुंदर बाताबरण ए.सी रूम नये- नाज नखरे पर है तो
वो भी स्कूल
बेटी बोली माँ बच्ची रोती है देखते ही अपना स्कूल
बड़ा दिल घबराता है जब मेड ले जाती है स्कूल
मई बोली मेरा भी दिल घबराया था जब भेजा था तुमको स्कूल
कितनी हो गई थी मई भी बेचैन घर में
मस्तिस्क था शून्य जब तुम भी गई थीं स्कूल
समय चक्र तेजी से घूमता है चाहें हो बह कूल या प्रति-कूल
इतिहास स्वयं ही दोहराता है हो चाहें हमारे अनुकूल या प्रति-कूल.