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14 जनवरी 2011

कटी पतंग

तंग, उँचा आसमान छूने के लिए अधीरदूसरी पतंगो को मनमौज से झूमती इठलाती देखकर मायुस। वह एक नियंत्रण की डोर से बंधी हुईसधे अनुशासन के आधार से उडती-लहराती, फ़िर भी परेशान। आसमान तो अभी और शेष थाशीतल समीर के उपरांत भी, अन्य पतंगो का नृत्य देख उपजीर्ष्या, उसे झुलसा रही थी। श्रेय की अदम्य लालसा और दूसरो से उँचाई पाने की महत्वाकांक्षा ने उसे बेकरार कर रखा था। स्वयं को तर्क देती, हाँ! प्रतिस्पर्धा ही तो उन्नति की सीढी है

किन्तु,फ्फ!! यह डोर बंधन!! डोर उसकी स्वतंत्रता में बाधक थी। अपनी महत्वाकांक्षा पूर्ति के लिए, वह दूसरी पतंगो की डोर से संघर्ष करने लगी। इस घर्षण में उसे भी अतीव आनंद आने लगा। अब तो  वह डोर से बस मुक्ति चाहती थी । अनंत आकाश में स्वच्छंद विचरण करना चाहती थी।

निरंतर घर्षण से डोर कटते ही, वह स्वतंत्र हो गई। सूत्रभंग के झटके ने उसे सहसा उंचाई की ओर धकेला, वह प्रसन्न हो गईकिन्तु यह क्या? वह उँचाई तो क्षण मात्र की थी। अब स्वयंमेव उपर उठने के सारे प्रयत्न विफल हो रहे थे। निरूपाय-निराधार डोलती हुई वह नीचे गिर रही थी। सांसे हलक में अटक गई थी, नीचे गहरा गर्त, बडा डरावना भासित हो रहा था। उसे डोर को पुनः पाने की प्रबल इच्छा जगी, किन्तु देर हो चुकी थी, डोर उसकी दृष्टि से ओझल हो चुकी थी। अन्तत: धरती पर गिर कर धूल धूसरित हो गई, पतंग

13 जून 2010

आधी दुनिया से द्रोह

मैं अपनी पहली ही पोस्ट में आधी दुनिया के विषय को छूना चाहता हूँ, यह  बात है  महिला शक्ति की।  क्योंकि आज अक्सर बात की जाती है महिला अधिकारों के बारे में, पुरुष से समानता के बारे में, नारी स्वतन्त्रा के बारे में।

महिलाओं के अधिकारो पर इतनी जागृति आई है, कि महिलाओं को सदा दमित शोषित करने वाला इस्लाम भी आयतों से खोज खोज कर स्वयं को महिला अधिकारों का पैरोकार दर्शाने का जी-तोड़ प्रयास कर रहा है। तो वहाँ इसाईयत नारी की स्वतन्त्रता एवं विकास का एकाधिकार दावा प्रस्तुत कर रहा है। और हिन्दुत्व तो मंत्रोचार ही कह रहा है कि हमने तो नारी को सदैव देवी की तरह पूजा है।

लेकिन धरातल पर शोषण और दमन आज भी जारी है। बस कुछ फ़र्क है तो  वर्तमान में  कुछ एक दमन और शोषण के किस्से प्रकाशित होते हैं। और बहुत से लोग पैरोकार बन कर आगे आते है।

कौन है ये लोग, क्या ये वाकई महिला अधिकारों पर चिन्तित हैक्या ये लोग महिलाओं के हितचिन्तक है?  क्या वाकई कोई  दर्द है इनके सीनों में?
मैं बताता हुं कौन हैं ये लोग?, और क्यों इतनी हाय-तौबा मचाते हैं. पहले तो हम विचार करते है, महिलाओ पर ये बन्दिशें और रोक कहां से आती है, निश्चित ही यह आती है धार्मिक संसकृति के नाम पर।

अब पुन: चलते है, कौन लोग है, जो तेज तर्रार आवाज उठाते है, महिलायें स्वयं?, नहीं!! बहुत से मामलों में तो महिलायें दिखाई ही नहीं देती। तो फिर कौन ये, ये है सेक्युलर मीडिया, सुडो-सेक्युलर,और कम्युनिस्ट्। क्योंकि इन्ही के पास है मक़सद। ये विचारधाराएँ धर्म को नहीं मानतीऔर इसी  बहाने वे धर्म पर आरोप मढ़कर, इसी बहाने उसे हरानें का सुख भोगती हैं। 

मेरा प्रयोजन धर्मों के बचाव पक्ष में खडा होना नहीं, और न ही मैं नारी अधिकारो के विरुद्ध हूँ। मेरी भावना है, एक सर्वथा भिन्न दृष्टि से देखा जाय, क्योंकि वास्तविकता आधारित चिन्तन के बिना इस समस्या का निवारण नहीं। जबकि इसके कथित आन्दोलनकारियों का मक़सद इस आग को जलते रखने में है।

कौन है जो कहते है, “कैसे भी कपडे पहने यह उनकी व्यक्तिगत पसन्द है।बात तो नारी हित की है पर मकसद जुदायह  ‘नारी स्वतन्त्रता’ जैसे  मीठे शब्दों से समाज को उन्मुक्त बनाकर, तहस नहस करने की मंशा रखते है। ताकि वे बिखरे समाज पर सत्ता कायम कर सके। स्वतंत्रता स्वछंद मानसिकता  की एक विद्रुप चाल है। स्वछंदता पर अन्दर से गुदगुदी महसूस करते, रोमांच भोगते ये लोग दूसरों को केवल ग्राहक या वोट के रूप में देखते हैं।

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