हम चाहते तो इंडिया गठबंधन को कई सीटों पर हरा सकते थेः चंद्रशेखर आज़ाद

चंद्रशेखर

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  • Author, दिलनवाज़ पाशा
  • पदनाम, बीबीसी संवाददाता

दिल्ली के शांग्रीला होटल और इंपीरियल होटल के मध्य स्थित वेस्टर्न कोर्ट को एमपी हॉस्टल भी कहा जाता है. यहां नवनिर्वाचित सांसदों को दिल्ली में ठहरने के लिए ठिकाना मिलता है.

वेस्टर्न कोर्ट की एनेक्सी बिल्डिंग के एक कमरे के बाहर कुछ ज़्यादा ही भीड़ है.

हाथों में गुलदस्ते और मिठाई के डिब्बे लिए खड़े लोग उत्तर प्रदेश की नगीना सीट से नवनिर्वाचित सांसद और आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के संस्थापक चंद्रशेखर आज़ाद से मुलाक़ात का इंतज़ार कर रहे हैं.

चंद्रशेखर आज़ाद ने उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एक गांव के दलित युवा से भारतीय संसद के सदस्य तक का सफ़र तय कर लिया है. ये उनके राजनीतिक जीवन का एक अहम पड़ाव है.

चंद्रशेखर आज़ाद जैसे ही कमरे से बाहर निकलते हैं, उनके समर्थकों में सेल्फ़ी खिंचाने और गुलदस्ता देने की होड़ सी लग जाती है.

जब चंद्रशेखर समर्थकों को नाम लेकर बुलाते हैं और गले लगाते हैं तो समर्थकों के चेहरे पर गर्व का एक भाव साफ़ नज़र आता है.

यहां आने वालों में सिर्फ दलित ही नहीं, बल्कि मुसलमान और अगड़ी जातियों के लोग भी हैं.

बीबीसी से बातचीत में चंद्रशेखर कहते हैं, " अभी मैं शुरू भी नहीं हुआ हूं, संसद पहुंचना बस एक पड़ाव है, हमारी मंज़िल अभी दूर है, हमें माननीय कांशीराम के सपनों और मिशन को पूरा करना है, अभी हमने बस एक ईंट लगाई है, पूरी इमारत खड़ी करना अभी बाक़ी है."

"जहां बाबा साहेब आंबेडकर ने, या उनसे पहले ज्योतिबा फूले ने, फिर साहू जी महाराज ने और आगे चलकर माननीय कांशीराम और बहन मायावती ने छोड़ा, वहां से आगे हमें काम शुरू करना है. एक दिन वंचित समाज के लोगों की पार्टी सत्ता में पहुंचेगी और आज़ादी के बाद जो अब तक नहीं हुआ, वो होगा, सभी को बराबर सम्मान मिलेगा.”

चंद्रशेखर आज़ाद भीम आर्मी की स्थापना से चर्चा में आए थे. उन्होंने जातिवाद और शोषण के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला. दलितों और मुसलमानों के मुद्दों को ज़ोर-शोर से उठाया.

बिना गठबंधन पहली चुनावी सफलता

चंद्रशेखर से मिलने वालों का तांता लगा हुआ है.
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भारत में जब नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ आंदोलन खड़ा हुआ तो चंद्रशेखर खुलकर आंदोलन में शामिल हुए.

हज़ारों की भीड़ के बीच वो दिल्ली की जामा मस्जिद से संविधान की कॉपी हाथ में लेकर बाहर निकले.

देश में जहां से भी उन्हें दलितों या वंचितों पर शोषण की जानकारी मिली, वो पहुंचे. उनके इस तेवर ने दलित युवाओं में एक क्रेज़ पैदा किया और कुछ सालों के भीतर ही वो चर्चित चेहरा बन गए.

क्या संसद पहुंचने के बाद चंद्रशेखर के तेवर बदलेंगे, इस सवाल पर वो कहते हैं,'' ये अंबेडकरवादियों के, ये जयभीम, जय जोहार, जय मंडल का नारा देने वालों के तेवर हैं, ये बदल नहीं सकते, वक्त के साथ मिट जरूर सकते हैं.''

"जब हम नहीं रहेंगे तो ये तेवर भी नहीं रहेंगे, संसद पहुंचने से हमारे तेवरों में कोई बदलाव नहीं आएगा. हमने जो कुछ भी पाया है, संघर्ष से पाया है. जहां कई अत्याचार होगा, किसी शोषित को सताया जाएगा, चंद्रशेखर वहां सड़क पर होगा. पहले से अधिक ताक़त के साथ होगा."

चंद्रशेखर की आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने उत्तर प्रदेश में 2022 विधानसभा चुनावों में अकेले चुनाव लड़ा और उनका एक भी उम्मीदवार नहीं जीत सका.

चुनाव में अकेले जाने से पहले उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के लिए अखिलेश यादव के साथ बैठकें कीं, लेकिन बात बन नहीं सकी.

2024 के लोकसभा चुनावों से पहले चंद्रशेखर की राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी से नज़दीकियां बढ़ीं, इंडिया गठबंधन में शामिल रही आरएलडी आगे चलकर बीजेपी की अगुवाई वाले गठबंधन के साथ हो गई. चंद्रशेखर एक बार फिर अकेले पड़ गए.

चंद्रशेखर आज़ाद ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सुरक्षित सीट नगीना से डेढ़ लाख वोटों के अंतर के साथ चुनाव जीता है.

उनके सामने इंडिया गठबंधन से पूर्व जज मनोज सिंह और बीजेपी से ओम कुमार थे.

दलितों की पार्टी के रूप में पहचानी जाने वाली बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार सुरेंद्र पाल सिंह को इस सीट पर सिर्फ़ 13272 वोट मिले.

बहुजन समाज पार्टी का अब एक भी सांसद नहीं है जबकि चंद्रशेखर अपनी आज़ाद समाज (कांशीराम) पार्टी का संसद में प्रतिनिधित्व करेंगे.

मायावती पर क्या बोले चंद्रशेखर

वीडियो कैप्शन, यूपी से सांसद चुने जाने के बाद चंद्रशेखर के तेवर कैसे रहेंगे?

उत्तर प्रदेश में सत्ता तक पहुंची और राजनीति का केंद्र रही बहुजन समाज पार्टी अपने सबसे बुरे दौर में है. पार्टी का ना विधानसभा में कोई सदस्य है और ना ही लोकसभा में.

ऐसे में ये माना जा रहा है कि बहुजन समाज पार्टी की जो राजनीतिक ज़मीन खाली हुई है, चंद्रशेखर वहां अपनी मौजूदगी दर्ज करा सकते हैं.

चंद्रशेखर कहते हैं, '' माननीय बहनजी जितना समाज को दे सकती थीं, उन्होंने दिया, उन्होंने बहुत काम किया है और उनका आशीर्वाद और सहयोग मुझे मिलता रहा है, मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा भी है."

'' लेकिन अब समाज ये महसूस कर रहा है कि जितना काम हुआ वो पर्याप्त नहीं है, उससे ज्यादा करने की ज़रूरत है और ये तब ही संभव है जब और मज़बूती से काम किया जाए. अब समाज मेरे साथ है और उसकी उम्मीदों को पूरा करना मेरी ज़िम्मेदारी है.''

चंद्रशेखर कहते हैं,'' जिस सीट पर मैंने चुनाव लड़ा है, वहां बसपा को एक प्रतिशत के क़रीब वोट मिला है, ये बताता है कि समाज अब हमें आगे बढ़ाना चाहता है.''

उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटों में से 37 पर समाजवादी पार्टी और 6 पर कांग्रेस की जीत हुई है.

इंडिया गठबंधन को 43 सीटें हासिल हुई हैं जबकि पिछले चुनावों में 62 सीटें जीतने वाली भाजपा 33 सीटों पर सिमट गई है. इस बार दलित मतदाता बड़ी तादाद में इंडिया गठबंधन की तरफ आए हैं.

यही वजह है कि पिछले चुनावों में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में लड़कर दस सीटें जीतने वाली बसपा इस बार एक भी सीट नहीं जीत सकी.

'तो इंडिया गठबंधन इतनी सीटें नहीं जीत पाता'

चंद्रशेखर

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वहीं चंद्रशेखर की आज़ाद समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की सिर्फ़ दो सीटों पर चुनाव लड़ा है.

डुमरियागंज सीट से पार्टी के उम्मीदवार ने क़रीब 80 हज़ार वोट हासिल किए हैं.

चंद्रशेखर ये दावा करते हैं कि यदि उनकी पार्टी सभी सीटों पर लड़ती तो इंडिया गठबंधन उत्तर प्रदेश में इतनी सीटें नहीं जीत पाता.

चंद्रशेखर कहते हैं, '' अगर हम यूपी में सभी सीटों पर चुनाव लड़ते तो इंडिया गठबंधन बड़ी तादाद में सीटें हार जाता. अगर इंडिया गठबंधन चाहे तो मेरा धन्यवाद कर सकता है. मैंने संविधान के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी अदा की है.''

दलित नेतृत्व के सवाल पर चंद्रशेखर कहते हैं, ''जाति व्यवस्था हम लोगों ने नहीं बनाई है, कब तक मीडिया हमें जाति के चश्मे से देखकर दलित नेता पुकारता रहेगा, आप जाति व्यवस्था के आधार पर मुझे दलित नेता कह रहे हैं, क्या प्रधानमंत्री को, राहुल गांधी को, अमित शाह को उनकी जाति का नेता कहा जा सकता है?''

आज़ाद समाज पार्टी या बसपा जैसी पार्टियों को अन्य बड़े दलों की बी-टीम कहे जाने के सवाल पर चंद्रशेखर कहते हैं, '' लोकतंत्र में रानी के पेट से राजा नहीं पैदा होता है, जनता जिसका साथ देती है वो राजा बन जाता है."

"कांशीराम जी को भी बी-टीम कहा गया लेकिन उन्होंने सत्ता को अपनी उंगली पर नचा दिया. राजतंत्र में लंबे समय तक सत्ता में रहे लोगों की लोकतंत्र में चूलें हिल गईं, उन्हें लगा कि अब अछूत, शूद्र, पिछड़े, ग़रीब भी सत्ता में आ जाएंगे, तो वो दलितों-शोषितों को बी-टीम कहने लगे. हम किसी की बी-टीम नहीं हैं,समय-समय पर मेरे जैसे लोग आते रहते हैं, उनकी कुर्सियां हिलाते रहते हैं.”

बीजेपी के सवाल पर क्या है रुख़?

चंद्रशेखर

चंद्रशेखर ना इंडिया गठबंधन के साथ हैं और ना एनडीए के. आगामी उपचुनाव में वो अकेले उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहे हैं.

एनडीए या इंडिया में शामिल होने के सवाल पर चंद्रशेखर कहते हैं, ''अभी तो हम नगीना के लोगों की सेवा करेंगे. नगीना के लोगों के हित में बेहतर क्या हो सकता है, उसके लिए जिसकी भी सरकार बनेगी उससे सहयोग लेंगे.''

"हमने देख लिया है कि सत्ता पक्ष से तो हमारी लड़ाई थी ही, विपक्षी गठबंधन भी हमें हराने के लिए ज़ोर-शोर से लगा था. हम किसी के सहारे पर नहीं रहेंगे, जनता के सहारे पर रहेंगे."

वो कहते हैं, "जनता ने संकेत दे दिया है कि जो गठजोड़ नगीना में बना है, वो प्रदेश और देश में भी बन जाएगा.''

चंद्रशेखर ये दावा भी करते हैं कि वो भारतीय जनता पार्टी के साथ कभी नहीं जाएंगे.

चंद्रशेखर कहते हैं,'' बीजेपी हमें पीएम भी बनाएगी तब भी नहीं जाएंगे, हम वैचारिक लोग हैं, हमारी राजनीति का मक़सद अपने महापुरुषों के विचारों को आगे बढ़ाना है.''

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