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Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke Summary, Explanation Class 7 Hindi Chapter 1
Hum Panchhi Unmukt Gagan Ke Summary, Explanation Class 7 Hindi Chapter 1
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कक्षा 7 पाठ 1 हम पंछी उन्मुक्त गगन के
CBSE Class 12 English Lesson
Explanation
सम्पूणर् किवता का आशय यह है िक पक्षी को गुलामी में िमलने वाली सुख -सुिवधाओं और
देखभाल से कही च्छी किठन आजादी लग रही है। वह आजाद हो कर बहता पानी पीना चाहता
है , कड़वा नीम का फल खाना चाहता है , िक्षितज तक पने सािथयों संग प्रितस्पधार् करना
चाहता है। इसी कारण वह ंत में प्राथर्ना कर रहा है िक यिद उसे भगवान् ने उड़ने के िलए पंख
िदए हैं तो उसे खुले आसमान में आजादी के साथ उड़ने िदया जाए।
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शब्दाथर् –
पंछी – पक्षी
उन्मुक्त – आज़ाद , खुले
गगन – आसमान
िपं जरबद्ध – िपं जरे के ंदर बंद
कनक – सोना
तीिलयाँ – सलाखें
पुलिकत – प्रेम , हषर् या खुशी आिद से गद्गद् रोमांिचत , नरम
व्याख्या – किवता की प्रस्तुत पंिक्तयों में िपं जरे में बंद पक्षी पनी व्यथा का वणर्न करते हुआ
कहते हैं िक हम खुले और आज़ाद आसमान में उड़ने वाले पक्षी हैं , हम िपं जरे के ंदर बंद होकर
खुशी से गाना नहीं गा पाएँ गे। आज़ाद होने की चाह में पंख फड़फड़ाने के कारण सोने की
सलाखों से टकराकर हमारे नरम पंख टू ट जाएँ गे।
भावाथर् – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ किवता में किव िशवमंगल िसं ह सुमन जी ने पक्षी के
माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दशार्या है। इन पंिक्तयों में किव स्पष्ट करना
चाहते हैं िक गुलामी में कभी भी कोई भी पना काम ख़ुशी से नहीं कर सकता है। कनक –
तीिलयों से किव का तात्पयर् सुख – सुिवधाओं से है और किव कहना चाहते हैं िक गुलामी में भले
ही सारी सुख – सुिवधाएँ हो िफर भी सभी आजादी को पाने का प्रयास करते रहते हैं।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँ गे भूखे-प्यासे ,
शब्दाथर् –
कटु क – कटु , कड़ुआ
िनबोरी – नीम का फल
कनक – कटोरी – सोने की कटोरी
व्याख्या – किवता की प्रस्तुत पंिक्तयों में िपं जरे में बंद पक्षी पनी िस्थित से दुखी हो कर पनी
व्यथा का वणर्न करता हुआ कहता हैं िक हम पक्षी बहता हुआ जल पीने वाले प्राणी हैं। कहने का
तात्पयर् यह है िक पिक्षयों को बहता हुआ पानी थार्त निदयों , झरनों का पानी पीना पसंद है।
िपं जरे में गुलामी का जीवन जीने से च्छा तो पक्षी भूखे प्यासे मर जाना पसंद करेंगे। पक्षी
कहता है िक उसके िलए िपं जरे में सोने की कटोरी में रखी हुई मैदा से कहीं च्छा नीम का कड़वा
फल है।
भावाथर् – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ किवता में किव िशवमंगल िसं ह सुमन जी ने पक्षी के
माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दशार्या है। इन पंिक्तयों में किव स्पष्ट करना
चाहते हैं िक पिक्षयों को िपं जरे में भले ही सोने की कटोरी में मैदा और पानी क्यों न िदया जाए ,
उस सोने की कटोरी में मैदा और पानी की जगह पक्षी को निदयों , झरनों का पानी पीना और
मैदा से कहीं च्छा नीम का कड़वा फल लगता है। क्योंिक स्वतंत्रता से जीवन जीते हुए कष्टों
को झेलना , गुलामी में सुख – सुिवधाओं के िमलने से हज़ार गुना च्छा है।
तरू की फुनगी पर के झल
ू े।
शब्दाथर् –
स्वणर् – श्रृंखला – सोने की जंजीर
गित – रफ़्तार
उड़ान – उड़ने की कला
तरु – पेड़
फुनगी – टहिनयों
पर – पंख
व्याख्या – प्रस्तुत किवता की पंिक्तयों में पक्षी पने दुःख को हम सभी से साँझा करते हुए कहते
हैं िक हमें सोने की जंजीरों से बने िपं जरे में बंद कर िदया गया है। िजसके कारण हम पनी उड़ने
की कला और रफ़्तार , सब कुछ भूल गए हैं। ब तो हम केवल सपने में ही देखते हैं िक हम पेड़ों
की ऊँची डािलयों में झूला झूल रहे हैं।
भावाथर् – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ किवता में किव िशवमंगल िसं ह सुमन जी ने पक्षी के
माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दशार्या है। इन पंिक्तयों में किव स्पष्ट करना
चाहते हैं िक गुलामी के कारण पशु हो या हम मनुष्य सभी पनी क़ाबिलयत को धीरे – धीरे भूल
जाते हैं और गुलामी के कारण स्वतंत्रता से कुछ भी करना केवल एक सपना रह जाता है।
शब्दाथर् –
रमान – लालसा , इच्छा , कामना
गगन की सीमा – िक्षितज
तारक – आँ ख की पुतली , तारे के समान
व्याख्या – प्रस्तुत किवता की पंिक्तयों में िपं जरे में कैद पक्षी पनी कल्पना में खोए हुए िपं जरें
की कैद में आने से पहले की पनी सोच को हमारे सामने उजागर करते हुए कहते हैं िक हम इस
िपं जरे में कैद होने से पहले हमारी इच्छा थी िक नीले आसमान की सीमा तक उड़ते चले जाएँ ।
पनी सूरज की िकरणों के जैसी लाल चोंच को खोल कर तारों के समान नार के दानों को चुग
लें। यह सब पक्षी की मात्र कल्पना है ,क्योंिक वह िपं जरों के बंधन में कैद है।
भावाथर् – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ किवता में किव िशवमंगल िसं ह सुमन जी ने पक्षी के
माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दशार्या है। इन पंिक्तयों में किव स्पष्ट करना
चाहते हैं िक िपं जरे में कैद पक्षी पनी कल्पना में खोए हुए पनी धूरी इच्छओं को याद करके
दुखी हो रहा है। भाव यह है िक गुलामी में रहता हुआ प्राणी पनी स्वतंत्रता को कभी नहीं भूलता
क्योंिक गुलामी िकसी को पसंद नहीं होती।
शब्दाथर् –
सीमाहीन – िजसकी कोई सीमा नहीं है
िक्षितज – जहाँ धरती और आसमान िमलते हुए प्रतीत होते हैं
होड़ा – होड़ी – दू सरे के बराबर होने या दू सरे से बढ़ जाने का प्रयत्न
तनती साँसों को डोरी – प्राण पंखेरू उड़ जाना या प्राणों को न्योछावर करना
व्याख्या – प्रस्तुत किवता की पंिक्तयों में पक्षी पने मन की बात को हम तक पहुँ चने की
कोिशश करते हुए कहता है िक यिद हम आजाद होते तो िजसकी कोई सीमा नहीं है ऐसे
आकाश की सीमा को पार करने के िलए दू सरे पिक्षयों से बढ़ जाने का प्रयत्न करते रहते। पक्षी
कहता है िक या तो हम िक्षितज तक पहुंच जाते या हमारी साँसे थम जाती। कहने का तात्पयर् यह
है िक पक्षी िक्षितज को पार करने के िलए पने प्राणों का त्याग करने को भी तैयार हैं।
भावाथर् – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ किवता में किव िशवमंगल िसं ह सुमन जी ने पक्षी के
माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दशार्या है। इन पंिक्तयों में किव स्पष्ट करना
चाहते हैं िक स्वतन्त्र प्राणी पनी िकसी भी इच्छा को पूरा करने के िलए िकसी भी हद को पार
कर सकता है िकन्तु गुलामी में जीने वाला प्राणी केवल आजादी से कुछ भी करने के केवल स्वप्न
ही देख सकता है।
शब्दाथर् –
नीड़ – घोसला
आश्रय – रहने के स्थान
िछन्न – िभन्न – नष्ट कर देना
आकुल – बैचैन , परेशान
िवघ्न – रुकावट
व्याख्या – प्रस्तुत किवता की पंिक्तयों में पक्षी उसे िपं जरे में कैद करने वाले व्यिक्त से प्राथर्ना
करता हुआ कहता है िक भले ही हमें पेड़ पर टहिनयों के घोसले में न रहने दो और चाहो तो हमारे
रहने के स्थान को भी नष्ट कर डालो। परन्तु जब भगवान ने हमें पंख िदए है , तो हमारी बैचैन
उड़ान में रुकावट ना डालो। कहने का तात्पयर् यह है िक पक्षी पनी आजादी चाहता है और वह
पने आप को कैद करने वाले व्यिक्त को याद िदला रहा है िक वह एक पक्षी है और उड़ना
उसका िधकार है तः उसे आजाद िकया जाए।
भावाथर् – ‘ हम पंछी उन्मुक्त गगन के ‘ किवता में किव िशवमंगल िसं ह सुमन जी ने पक्षी के
माध्यम से मनुष्य जीवन में स्वतंत्रता के महत्व को दशार्या है। इन पंिक्तयों में किव स्पष्ट करना
चाहते हैं िक भगवान् ने सभी प्रािणयों को िकसी न िकसी िवशेषता के साथ इस धरती पर भेजा
है। जैसे पिक्षयों की िवशेषता है उड़ना। सभी को पनी िवशेषताओं के साथ जीने का िधकार
है। तः िकसी के भी मागर् में िवघ्न डालना उिचत नहीं है।
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प्रश्न 2 – पक्षी उन्मुक्त रहकर पनी कौन – कौन सी इच्छाएँ पूरी करना चाहते हैं ?
उत्तर – पक्षी उन्मुक्त रहकर गीत गाना चाहता है। स्वतन्त्र हो कर आकाश में उड़ना चाहता है। वह
स्वतंत्र रहकर निदयों – झरनों का जल पीना चाहता है। पेड़ के फल खाना चाहता है। वृक्षों की
डािलयों पर बैठकर झुला झूलना चाहता है। पने पंखों को पूणर्तः फैला कर सीमाहीन िक्षितज
को छूना चाहता है। पनी सूरज जैसी लाल चोंच से नार के दाने चुगना चाहता है।
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